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00:30, 1 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण
बात थामती है
समय की जड़
जिस खिड़की पर सूरज बैठता है
उसकी छुअन से ज़िन्दा होती है
अधपकी बात
कौन किसे मात देता है
समय के विवर्तन में
कौन करता है संग्राम
किसका अधिकार
कौन करता है सन्धि या छल
सब कुछ है आपेक्षिक
गँवाता है कौन रिश्ता
करता है कौन विनिमय
बोझिल सांस को सम्भालकर
कौन सजाता है ख़ुद को चित्र की तरह
किसके लिए नग्न रातें
छोड़ देती हैं राह?
किसके लिए यह छाया-रोशनी
कौन किसका रक़ीब
हमारे उर्वर मन में
किसके लिए है यह तन्हाई
मृत्यु के उस पार दुख नहीं रहता।
मूल असमिया भाषा से अनुवाद : दिनकर कुमार