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"दौलत का चंद रोज़ में यूं जादू चल गया / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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दौलत का चंद रोज़ में यूं जादू चल गया | दौलत का चंद रोज़ में यूं जादू चल गया | ||
कल तक जो आदमी था वो पत्थर में ढल गया | कल तक जो आदमी था वो पत्थर में ढल गया | ||
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उसने भी आँखें फेर लीं मैं भी बदल गया | उसने भी आँखें फेर लीं मैं भी बदल गया | ||
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अब आप आए हो मेरा अहवाल पूछने | अब आप आए हो मेरा अहवाल पूछने | ||
− | जब थम गया | + | जब थम गया उबाल बुरा वक़्त टल गया |
कुछ देर बाद चाँद निकल आएगा 'रक़ीब' | कुछ देर बाद चाँद निकल आएगा 'रक़ीब' | ||
अब शाम होने वाली है सूरज तो ढल गया | अब शाम होने वाली है सूरज तो ढल गया | ||
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21:24, 2 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण
दौलत का चंद रोज़ में यूं जादू चल गया
कल तक जो आदमी था वो पत्थर में ढल गया
आने से उनके घर में मेरे रौशनी हुई
कल रात मेरे घर से अँधेरा निकल गया
मैं तो गमे-हयात से बेज़ार बैठा था
आई जो तेरी याद मेरा जी बहल गया
फिर यूँ हुआ के धर्म की दीवार आ गयी
उसने भी आँखें फेर लीं मैं भी बदल गया
वो आग सारी उम्र मुझे याद क्यों रही
जिस आग में तो प्यार, वफ़ा, दिल भी जल गया
अब आप आए हो मेरा अहवाल पूछने
जब थम गया उबाल बुरा वक़्त टल गया
कुछ देर बाद चाँद निकल आएगा 'रक़ीब'
अब शाम होने वाली है सूरज तो ढल गया