"दिलों पर वार करने वालों को क़ातिल समझ लेना / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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दिलों पर वार करने वालों को क़ातिल समझ लेना | दिलों पर वार करने वालों को क़ातिल समझ लेना | ||
ये है हुस्ने सितम इसको न तुम मुश्किल समझ लेना | ये है हुस्ने सितम इसको न तुम मुश्किल समझ लेना | ||
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कहे आधा घड़ा खाली उसे जाहिल समझ लेना | कहे आधा घड़ा खाली उसे जाहिल समझ लेना | ||
भरा आधा कहे जो भी उसे काबिल समझ लेना | भरा आधा कहे जो भी उसे काबिल समझ लेना | ||
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तेरे कूँचे में आए हैं दिखाने को हसीं जलवे | तेरे कूँचे में आए हैं दिखाने को हसीं जलवे | ||
नज़ारा रंग लाएगा सरे महफ़िल समझ लेना | नज़ारा रंग लाएगा सरे महफ़िल समझ लेना | ||
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जुबां ख़ामोश थी ऐसी लबों पर जैसे ताला हो | जुबां ख़ामोश थी ऐसी लबों पर जैसे ताला हो | ||
मेरे आँखों की सुर्खी को दिले बिस्मिल समझ लेना | मेरे आँखों की सुर्खी को दिले बिस्मिल समझ लेना | ||
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सफ़र की मंजिलें तो आरज़ी हैं ज़िन्दगानी में | सफ़र की मंजिलें तो आरज़ी हैं ज़िन्दगानी में | ||
"जहाँ पर टूट जाए दम उसे मंजिल समझ लेना" | "जहाँ पर टूट जाए दम उसे मंजिल समझ लेना" | ||
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भले ही बाँट ले खुशियों के पर्वत सारी दुनिया से | भले ही बाँट ले खुशियों के पर्वत सारी दुनिया से | ||
मगर राई से ग़म में मुझको तू शामिल समझ लेना | मगर राई से ग़म में मुझको तू शामिल समझ लेना | ||
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नज़र आती नहीं मर्दानगी इसमें सियासत दाँ | नज़र आती नहीं मर्दानगी इसमें सियासत दाँ | ||
बहाए खूँ जो मुफ़लिस का उसे बुजदिल समझ लेना | बहाए खूँ जो मुफ़लिस का उसे बुजदिल समझ लेना | ||
− | + | ||
− | महल जो घूस ले लेकर बनाए, मीडिया | + | महल जो घूस ले लेकर बनाए, मीडिया में अब |
− | + | तिरी बखिया न उधड़े जो सरे-महफ़िल समझ लेना | |
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− | + | कभी तूफ़ान से बचकर निकल आये तिरी कश्ती | |
− | 'रक़ीब'-ए-बेनवा मझधार को साहिल समझ लेना | + | 'रक़ीब'-ए-बेनवा मझधार को साहिल समझ लेना |
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22:59, 2 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण
दिलों पर वार करने वालों को क़ातिल समझ लेना
ये है हुस्ने सितम इसको न तुम मुश्किल समझ लेना
कहे आधा घड़ा खाली उसे जाहिल समझ लेना
भरा आधा कहे जो भी उसे काबिल समझ लेना
तेरे कूँचे में आए हैं दिखाने को हसीं जलवे
नज़ारा रंग लाएगा सरे महफ़िल समझ लेना
जुबां ख़ामोश थी ऐसी लबों पर जैसे ताला हो
मेरे आँखों की सुर्खी को दिले बिस्मिल समझ लेना
सफ़र की मंजिलें तो आरज़ी हैं ज़िन्दगानी में
"जहाँ पर टूट जाए दम उसे मंजिल समझ लेना"
भले ही बाँट ले खुशियों के पर्वत सारी दुनिया से
मगर राई से ग़म में मुझको तू शामिल समझ लेना
नज़र आती नहीं मर्दानगी इसमें सियासत दाँ
बहाए खूँ जो मुफ़लिस का उसे बुजदिल समझ लेना
महल जो घूस ले लेकर बनाए, मीडिया में अब
तिरी बखिया न उधड़े जो सरे-महफ़िल समझ लेना
कभी तूफ़ान से बचकर निकल आये तिरी कश्ती
'रक़ीब'-ए-बेनवा मझधार को साहिल समझ लेना