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"हम कहते हैं बात बराबर / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

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हम कहते हैं बात बराबर
 
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छोटी बड़ी है जात बराबर
 
छोटी बड़ी है जात बराबर
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माँ और बाप हैं इक जुड़वां के  
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माँ और बाप हैं इक जुड़वां के
 
पैदा साथ न तात बराबर
 
पैदा साथ न तात बराबर
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दोनों हैं इक डाल के पत्ते
 
दोनों हैं इक डाल के पत्ते
 
दोनों की क्या बात बराबर
 
दोनों की क्या बात बराबर
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देखो गज मूषक में अन्तर
 
देखो गज मूषक में अन्तर
कब दोनों के दांत बराबर  
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कब दोनों के दांत बराबर
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बाप हैं दस के निर्वंसी भी
 
बाप हैं दस के निर्वंसी भी
 
होंगे कैसे नात बराबर
 
होंगे कैसे नात बराबर
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काक और कोयल दोनों बोलें
 
काक और कोयल दोनों बोलें
कहिये क्यों गात बराबर
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कहिये क्यों ना गात बराबर
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होता है इक रोज बरस में
 
होता है इक रोज बरस में
 
जिसका दिन और रात बराबर
 
जिसका दिन और रात बराबर
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चाहे खा लें काजू पिस्ता  
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चाहे खा लें काजू पिस्ता
 
है सबकी अवकात बराबर
 
है सबकी अवकात बराबर
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कोइ न जाने किस जा खड़ी है
 
कोइ न जाने किस जा खड़ी है
 
मौत लगाए घात बराबर
 
मौत लगाए घात बराबर
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नैन 'रक़ीब' सजल हैं तेरे
 
नैन 'रक़ीब' सजल हैं तेरे
 
क्यों ना हो फिर मात बराबर
 
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23:18, 2 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण

हम कहते हैं बात बराबर
छोटी बड़ी है जात बराबर

माँ और बाप हैं इक जुड़वां के
पैदा साथ न तात बराबर

दोनों हैं इक डाल के पत्ते
दोनों की क्या बात बराबर

देखो गज मूषक में अन्तर
कब दोनों के दांत बराबर

बाप हैं दस के निर्वंसी भी
होंगे कैसे नात बराबर

काक और कोयल दोनों बोलें
कहिये क्यों ना गात बराबर

होता है इक रोज बरस में
जिसका दिन और रात बराबर

चाहे खा लें काजू पिस्ता
है सबकी अवकात बराबर

कोइ न जाने किस जा खड़ी है
मौत लगाए घात बराबर

नैन 'रक़ीब' सजल हैं तेरे
क्यों ना हो फिर मात बराबर