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"मौत इक दिखावा है मर के भी नहीं मरते / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

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फिर मेरी सितारों से माँग क्यों नहीं भरते
 
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मैं हबीब समझा था तुम 'रक़ीब' हो शायद
 
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इसलिए मोहब्बत का दम कभी नहीं भरते
 
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15:30, 4 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण


मौत इक दिखावा है मर के भी नहीं मरते
ज़िन्दगी के दीवाने मौत से नहीं डरते

डर है तुमको दुनिया का इश्क़ क्या करोगे तुम
इश्क़ में जो डरते हैं इश्क़ वो नहीं करते

वो भी क्या करें उन पर मेहरबाँ जवानी है
पाँव वो ज़मीं पर अब इसलिए नहीं रखते

जो कहा सुना मैंने प्यार करते हो मुझसे
फिर मेरी सितारों से माँग क्यों नहीं भरते

जान अपनी देते हैं भूख में मगर फिर भी
कुछ दरिन्द ऐसे हैं घास जो नहीं चरते

नफ़रतों के सागर में जो हसीन डूबे हैं
आँसुओं से वह आँचल तर कभी नहीं करते

मैं हबीब समझा था तुम 'रक़ीब' हो शायद
इसलिए मोहब्बत का दम कभी नहीं भरते