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"जब भी तू मेहरबान होता है / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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10:09, 5 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण
जब भी तू मेहरबान होता है
दिल मेरा बदगुमान होता है
प्यार है देन एक क़ुदरत की
पाए, जो भागवान होता है
लोग उसको सलाम करते हैं
जिसका ऊँचा मकान होता है
अपना बिस्तर ज़मीन, रातों को
आसमाँ सायबान होता है
जीत लेता है दुश्मनों के दिल
जब कोई ख़ुश बयान होता है
रोज ख़तरों से खेलने वाला
साहिबे आन-बान होता है
हूरे जन्नत है ज़िन्दगी मेरी
हुस्न क़ुदरत का दान होता है
पुख्तगी हो अगर इरादों में
आदमी कामरान होता है
हो जो शाइर हक़ीक़तन ऐ 'रक़ीब'
वो ही अहले ज़बान होता है