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"ज़रा सा हौसला होता तो तूफां से गुज़र जाते / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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यक़ीनन आप कश्ती से सरे साहिल उतर जाते | यक़ीनन आप कश्ती से सरे साहिल उतर जाते | ||
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ख़ुशी हर इक इधर आ जाती सारे ग़म उधर जाते | ख़ुशी हर इक इधर आ जाती सारे ग़म उधर जाते | ||
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हबीबे बावफ़ा ने ज़िन्दगी बख्शी मुहब्बत को | हबीबे बावफ़ा ने ज़िन्दगी बख्शी मुहब्बत को | ||
'रक़ीब'-ए-बेनवा वरना तेरे जज़बात मर जाते | 'रक़ीब'-ए-बेनवा वरना तेरे जज़बात मर जाते | ||
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23:06, 5 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण
ज़रा सा हौसला होता तो तूफां से गुज़र जाते
यक़ीनन आज कश्ती से सरे साहिल उतर जाते
बढ़ाता हौसला कोई तो तूफां से गुज़र जाते
यक़ीनन आप कश्ती से सरे साहिल उतर जाते
मुहब्बत पाक थी, नापाक हो जाती तो क्या होता
किसी के क़ुर्ब में रहकर अगर हद से गुज़र जाते
मुक़द्दर साथ देता तो मज़ा जीने का आ जाता
ख़ुशी हर इक इधर आ जाती सारे ग़म उधर जाते
कदूरत आ गयी थी दो दिलों के दरमियां वरना
मुहब्बत के फ़साने में बहुत से रंग भर जाते
करम फ़रमाई उनकी जाग उट्ठी मेहरबानी है
ख़ुदा ने ख़ैर की वरना कई जिस्मों से सर जाते
कभी जीने नहीं देते ये हरगिज़ चैन से हमको
अगर हम लम्हा भर को भी जहां वालों से डर जाते
हबीबे बावफ़ा ने ज़िन्दगी बख्शी मुहब्बत को
'रक़ीब'-ए-बेनवा वरना तेरे जज़बात मर जाते