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"है ग़ैब की सदा जो सुनाई न दे मुझे / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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है ग़ैब की सदा जो सुनाई न दे मुझे | है ग़ैब की सदा जो सुनाई न दे मुझे | ||
वो सामने है और दिखाई न दे मुझे | वो सामने है और दिखाई न दे मुझे | ||
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सौदा दिलों का होता नहीं ज़र से मेरी जाँ | सौदा दिलों का होता नहीं ज़र से मेरी जाँ | ||
− | + | इस दिल के कारोबार में पाई न दे मुझे | |
− | + | इज़हार-ए-इश्क़ करके कहाँ खो गया है तू | |
अब आ जा, और ज़हरे जुदाई न दे मुझे | अब आ जा, और ज़हरे जुदाई न दे मुझे | ||
− | + | रुकते नहीं हैं आँख से आँसू तिरे बग़ैर | |
− | + | बर्दाश्त की ख़ुदारा दुहाई न दे मुझे | |
यूं बेख़बर वजूद के एहसास से हुआ | यूं बेख़बर वजूद के एहसास से हुआ | ||
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केवल ज़मीनों ज़र नहीं माँ-बाप भी बटे | केवल ज़मीनों ज़र नहीं माँ-बाप भी बटे | ||
− | + | ऐसा 'रक़ीब' भाई सा, भाई न दे मुझे | |
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00:49, 6 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण
है ग़ैब की सदा जो सुनाई न दे मुझे
वो सामने है और दिखाई न दे मुझे
तेरे किताबे रुख़ पे जो अश्क़ों ने लिख दिया
नज़रों से पढ़ चुका हूँ सफाई न दे मुझे
सौदा दिलों का होता नहीं ज़र से मेरी जाँ
इस दिल के कारोबार में पाई न दे मुझे
इज़हार-ए-इश्क़ करके कहाँ खो गया है तू
अब आ जा, और ज़हरे जुदाई न दे मुझे
रुकते नहीं हैं आँख से आँसू तिरे बग़ैर
बर्दाश्त की ख़ुदारा दुहाई न दे मुझे
यूं बेख़बर वजूद के एहसास से हुआ
"अपने ही दिल की बात सुनाई न दे मुझे"
केवल ज़मीनों ज़र नहीं माँ-बाप भी बटे
ऐसा 'रक़ीब' भाई सा, भाई न दे मुझे