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"दिल में घर किए अपना ग़म हज़ार बैठे हैं / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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दिल में घर किए अपना ग़म हज़ार बैठे हैं | दिल में घर किए अपना ग़म हज़ार बैठे हैं | ||
बेख़ुदी में क्यों उनको हम पुकार बैठे हैं | बेख़ुदी में क्यों उनको हम पुकार बैठे हैं | ||
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आज दिल मुक़द्दर से अपना हार बैठे हैं | आज दिल मुक़द्दर से अपना हार बैठे हैं | ||
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मुन्तज़िर इशारे के जाँनिसार बैठे हैं | मुन्तज़िर इशारे के जाँनिसार बैठे हैं | ||
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हाल है बुरा उनका जो हैं आसमानों पर | हाल है बुरा उनका जो हैं आसमानों पर | ||
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कल 'रक़ीब' वो क्या थे आज क्या हैं क्या कहिये | कल 'रक़ीब' वो क्या थे आज क्या हैं क्या कहिये | ||
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10:19, 6 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण
दिल में घर किए अपना ग़म हज़ार बैठे हैं
बेख़ुदी में क्यों उनको हम पुकार बैठे हैं
थे जिन्हें गिले शिकवे अब नहीं रहे हमसे
वो हमारी राहों में बेक़रार बैठे हैं
दिल को एक मुद्दत से हम संभाले बैठे थे
आज दिल मुक़द्दर से अपना हार बैठे हैं
दिल की क्या हकीकत है जान अपनी हाज़िर है
मुन्तज़िर इशारे के जाँनिसार बैठे हैं
क्या ख़बर वो ख़्वाबों में कब हमारे अब आएं
हम उन्हें हक़ीक़त में अब उतार बैठे हैं
हाल है बुरा उनका जो हैं आसमानों पर
ग़म नहीं ज़मीं पर कुछ ख़ाकसार बैठे हैं
कल 'रक़ीब' वो क्या थे आज क्या हैं क्या कहिये
भीड़ में फ़क़ीरों की ताजदार बैठे हैं