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"बेवफ़ा को भी जहाँ में बावफ़ा मिल जाएगा / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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थक के वो बैठा ही था, फिर चल पड़ा ये सोचकर | थक के वो बैठा ही था, फिर चल पड़ा ये सोचकर | ||
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कम नहीं होंगे सितम, बेहतर है साथी ढूंढ ले | कम नहीं होंगे सितम, बेहतर है साथी ढूंढ ले | ||
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है तो मुश्किल, कोशिशों से तू बना मुमकिन 'रक़ीब' | है तो मुश्किल, कोशिशों से तू बना मुमकिन 'रक़ीब' | ||
सर छिपाने को कहीं भी घोंसला मिल जाएगा | सर छिपाने को कहीं भी घोंसला मिल जाएगा | ||
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00:22, 7 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण
बेवफ़ा को भी जहाँ में बा-वफ़ा मिल जाएगा
मेरी बाहों में मुहब्बत का सिला मिल जाएगा
क्या लिखा है फूल की क़िस्मत में किसको है ख़बर
सर चढ़ेगा, या कि क़दमों में पड़ा मिल जाएगा
बन्द हैं सब खिड़कियाँ और बन्द हैं सारे किवाड़
घर में कैसे मुफ़लिसी को दाख़िला मिल जाएगा
थक के वो बैठा ही था, फिर चल पड़ा ये सोचकर
दर कहीं कोई न कोई तो खुला मिल जाएगा
शेख़, हम होंगे जुदा वादा बिरहमन यार का
जब मुझे भगवान या तुझको ख़ुदा मिल जाएगा
कम नहीं होंगे सितम, बेहतर है साथी ढूंढ ले
“ज़ुल्म से लड़ने का दिल को हौसला मिल जाएगा”
है तो मुश्किल, कोशिशों से तू बना मुमकिन 'रक़ीब'
सर छिपाने को कहीं भी घोंसला मिल जाएगा