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"आँचल जब भी लहराते हो / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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क्यों ऐसी बात सुनाते हो | क्यों ऐसी बात सुनाते हो | ||
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क्यों और इसे भड़काते हो | क्यों और इसे भड़काते हो | ||
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छू जाए कोई डर जाते हो | छू जाए कोई डर जाते हो | ||
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क्यों कहते हुए रुक जाते हो | क्यों कहते हुए रुक जाते हो | ||
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बच्चे हैं 'रक़ीब' तो खेलेंगे | बच्चे हैं 'रक़ीब' तो खेलेंगे | ||
बेकार उन्हें समझाते हो | बेकार उन्हें समझाते हो | ||
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23:50, 8 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण
आँचल जब भी लहराते हो
जादू दिल पर कर जाते हो
जिस चीज़ में है जीवन अमृत
उस चीज़ को तुम ठुकराते हो
जो तोड़ दे दिलवालों के दिल
क्यों ऐसी बात सुनाते हो
तुम दिल में लगाकर आग मिरे
क्यों और इसे भड़काते हो
जब भीड़ में अनजानेपन से
छू जाए कोई डर जाते हो
तुम साफ़ कहो जो कहना है
क्यों कहते हुए रुक जाते हो
दिल टूटने वाला रोता है
दिल तोड़ के तुम मुस्काते हो
बच्चे हैं 'रक़ीब' तो खेलेंगे
बेकार उन्हें समझाते हो