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"छोड़ा था जहाँ मुझको उसी जा पे खड़ा हूँ / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

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छोड़ा था जहाँ मुझको उसी जा पे खड़ा हूँ
 
छोड़ा था जहाँ मुझको उसी जा पे खड़ा हूँ
हर लमहा तेरे आने की रह देख रहा हूँ
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रस्ता तिरे आने का वहीं देख रहा हूँ
  
 
क्यों बादे-सबा ख़ुशबू चुरा लेती है मेरी
 
क्यों बादे-सबा ख़ुशबू चुरा लेती है मेरी
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काटे नहीं कटती हैं ये तन्हाई की रातें
 
काटे नहीं कटती हैं ये तन्हाई की रातें
एहसास की शिद्दत को मैं अब जान चुका हूँ
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एहसास की शिद्दत को मगर जान गया हूँ
  
 
बनकर जो उड़ा भाप तो बरसात में लौटा
 
बनकर जो उड़ा भाप तो बरसात में लौटा
इक बूँद हूँ पानी की समन्दर में मिला हूँ
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इक बूँद हूँ पानी की समुन्दर में मिला हूँ
  
हर रोज़ यहाँ मरने को जीना कहे दुनिया
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हर गाम पे छलने को यहां लोग खड़े हैं
 
ये मुझको ही मालूम है मैं कैसे जिया हूँ
 
ये मुझको ही मालूम है मैं कैसे जिया हूँ
  
हँस-हँस के सितम क्यों नहीं, अपनों के मैं झेलूं
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हँस-हँस के सितम अपनों के झेले हैं मुसलसल
"रिश्तों की अज़ीयत का सफ़र काट रहा हूँ"
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"रिश्तों की अज़िय्यत का सफ़र काट रहा हूँ"
  
 
फ़ितरत में रक़ाबत की 'रक़ीब' आई न कुछ बात
 
फ़ितरत में रक़ाबत की 'रक़ीब' आई न कुछ बात
मैं फ़ेलो अमल में यहाँ बहुतों से भला हूँ
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मैं फ़ेल-ओ-अमल में यहाँ बहुतों से भला हूँ
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21:31, 9 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण

छोड़ा था जहाँ मुझको उसी जा पे खड़ा हूँ
रस्ता तिरे आने का वहीं देख रहा हूँ

क्यों बादे-सबा ख़ुशबू चुरा लेती है मेरी
मैं फूल हूँ, काँटों की हिफ़ाज़त में पला हूँ

काटे नहीं कटती हैं ये तन्हाई की रातें
एहसास की शिद्दत को मगर जान गया हूँ

बनकर जो उड़ा भाप तो बरसात में लौटा
इक बूँद हूँ पानी की समुन्दर में मिला हूँ

हर गाम पे छलने को यहां लोग खड़े हैं
ये मुझको ही मालूम है मैं कैसे जिया हूँ

हँस-हँस के सितम अपनों के झेले हैं मुसलसल
"रिश्तों की अज़िय्यत का सफ़र काट रहा हूँ"

फ़ितरत में रक़ाबत की 'रक़ीब' आई न कुछ बात
मैं फ़ेल-ओ-अमल में यहाँ बहुतों से भला हूँ