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"होता नहीं है प्यार भी अब प्यार की तरह / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

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सूखे गुलाब, अधजले तस्वीर और ख़ुतूत
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तस्वीर हो कि सूखे गुलाब और ख़ुतूत सब
 
चूमे गए कभी लबो रुख़सार की तरह
 
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मानी बदल गए यहाँ नेकी के जब 'रक़ीब'
 
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23:06, 9 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण

होता नहीं है प्यार भी अब प्यार की तरह
करने लगे हैं लोग ये ब्योपार की तरह

तस्वीर हो कि सूखे गुलाब और ख़ुतूत सब
चूमे गए कभी लबो रुख़सार की तरह

इन्साफ़ की दुकान है मुंसिफ़ दुकानदार
बिकने लगा है जाओ खरीदार की तरह

मन्दिर है दूर ग़म नहीं मस्जिद तो है क़रीब
नेमत लुटा रहा है वो दिलदार की तरह

रिश्ता गुलों से है न गुलिश्तां से रब्त है
गुलशन में जी रहे हैं मगर ख़ार की तरह

यूं तो दिलो दिमाग़ में आए बहुत ख़याल
उतरे वरक़ पे चंद ही अशआर की तरह

मानी बदल गए यहाँ नेकी के जब 'रक़ीब'
"हम भी खड़े हुए हैं गुनहगार की तरह"