भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"शहीदे वतन का नहीं कोई सानी / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब' |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> शहीदे व…) |
SATISH SHUKLA (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | शहीदे वतन का नहीं कोई सानी | + | |
− | वतन वालों पर उनकी है मेहरबानी | + | शहीदे वतन का नहीं कोई सानी |
− | + | वतन वालों पर उनकी है मेहरबानी | |
− | वतन पर निछावर किया अपना सब कुछ | + | |
− | लड़कपन का आलम बुढ़ापा जवानी | + | वतन पर निछावर किया अपना सब कुछ |
− | + | लड़कपन का आलम बुढ़ापा जवानी | |
− | किया दिल से हर फ़ैसला ज़िंदगी का | + | |
− | कोई बात समझी, न बूझी, न जानी | + | किया दिल से हर फ़ैसला ज़िंदगी का |
− | + | कोई बात समझी, न बूझी, न जानी | |
+ | |||
लड़े खून की आख़िरी बूँद तक वो | लड़े खून की आख़िरी बूँद तक वो | ||
− | लहू की नदी भी पड़ी है बहानी | + | लहू की नदी भी पड़ी है बहानी |
− | + | ||
− | कफ़न की कसम, “हो हिफाज़त वतन की” | + | कफ़न की कसम, “हो हिफाज़त वतन की” |
− | वसीयत शहीदों की है | + | वसीयत शहीदों की है मुहँज़बानी |
− | + | ||
− | वतन के लिए जो फ़ना हो गए हैं | + | वतन के लिए जो फ़ना हो गए हैं |
− | तिरंगा उन्हीं की सुनाता कहानी | + | तिरंगा उन्हीं की सुनाता कहानी |
− | + | ||
− | 'रक़ीब' उनका क्यों ज़िक्र दो दिन बरस में | + | 'रक़ीब' उनका क्यों ज़िक्र दो दिन बरस में |
− | वो हैं जाविदाँ ज़िक्र भी जाविदानी | + | वो हैं जाविदाँ ज़िक्र भी जाविदानी |
+ | |||
</poem> | </poem> |
11:22, 10 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण
शहीदे वतन का नहीं कोई सानी
वतन वालों पर उनकी है मेहरबानी
वतन पर निछावर किया अपना सब कुछ
लड़कपन का आलम बुढ़ापा जवानी
किया दिल से हर फ़ैसला ज़िंदगी का
कोई बात समझी, न बूझी, न जानी
लड़े खून की आख़िरी बूँद तक वो
लहू की नदी भी पड़ी है बहानी
कफ़न की कसम, “हो हिफाज़त वतन की”
वसीयत शहीदों की है मुहँज़बानी
वतन के लिए जो फ़ना हो गए हैं
तिरंगा उन्हीं की सुनाता कहानी
'रक़ीब' उनका क्यों ज़िक्र दो दिन बरस में
वो हैं जाविदाँ ज़िक्र भी जाविदानी