"हवा के दोश पे किस गुलबदन की ख़ुशबू है / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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− | + | हवा के दोश पे किस गुल-बदन की ख़ुश्बू है | |
− | + | गुमान होता है सारे चमन की ख़ुश्बू है | |
− | + | तेरा वज़ूद है मौसम बहार का जैसे | |
− | जो तेरे तन की है वो मेरे मन की | + | अदा में तेरी, तेरे बांकपन की ख़ुश्बू है |
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+ | क़रीब पा के तुझे झूमता है मन मेरा | ||
+ | जो तेरे तन की है वो मेरे मन की ख़ुश्बू है | ||
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+ | मिरे वजूद को मख़्मूर कर दिया इसने | ||
+ | बड़ी अनोखी तिरे पैरहन की ख़ुश्बू है | ||
बला की शोख़ है सूरज की एक-एक किरन | बला की शोख़ है सूरज की एक-एक किरन | ||
− | पयामे ज़िंदगी हर इक किरन की | + | पयामे ज़िंदगी हर इक किरन की ख़ुश्बू है |
− | गले मिली कभी उर्दू जहाँ पे हिंदी से | + | गले मिली कभी उर्दू जहाँ पे हिंदी से |
− | मिरे मिज़ाज में उस अंजुमन की | + | मिरे मिज़ाज में उस अंजुमन की ख़ुश्बू है |
− | ये बात पूछे तो | + | ये बात पूछे तो मेहनत कशों जा के कोई |
− | कि रात चीज़ है क्या, क्या थकन कि | + | कि रात चीज़ है क्या, क्या थकन कि ख़ुश्बू है |
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+ | मिलेगी मंज़िले- मक़सूद एक दिन मुझको | ||
+ | कि मेरे अज़्मो-अमल में लगन कि ख़ुश्बू है | ||
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बहुत संभाल के रखा है इनको मैंने 'रक़ीब' | बहुत संभाल के रखा है इनको मैंने 'रक़ीब' | ||
− | एक एक लफ़्ज़ में ख़त के वतन की | + | एक एक लफ़्ज़ में ख़त के वतन की ख़ुश्बू है |
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15:39, 10 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण
हवा के दोश पे किस गुल-बदन की ख़ुश्बू है
गुमान होता है सारे चमन की ख़ुश्बू है
तेरा वज़ूद है मौसम बहार का जैसे
अदा में तेरी, तेरे बांकपन की ख़ुश्बू है
क़रीब पा के तुझे झूमता है मन मेरा
जो तेरे तन की है वो मेरे मन की ख़ुश्बू है
मिरे वजूद को मख़्मूर कर दिया इसने
बड़ी अनोखी तिरे पैरहन की ख़ुश्बू है
बला की शोख़ है सूरज की एक-एक किरन
पयामे ज़िंदगी हर इक किरन की ख़ुश्बू है
गले मिली कभी उर्दू जहाँ पे हिंदी से
मिरे मिज़ाज में उस अंजुमन की ख़ुश्बू है
ये बात पूछे तो मेहनत कशों जा के कोई
कि रात चीज़ है क्या, क्या थकन कि ख़ुश्बू है
मिलेगी मंज़िले- मक़सूद एक दिन मुझको
कि मेरे अज़्मो-अमल में लगन कि ख़ुश्बू है
बहुत संभाल के रखा है इनको मैंने 'रक़ीब'
एक एक लफ़्ज़ में ख़त के वतन की ख़ुश्बू है