"उफ़! मिटा पाए न उसकी याद अपने दिल से हम / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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उफ़! मिटा पाए न उसकी याद अपने दिल से हम | उफ़! मिटा पाए न उसकी याद अपने दिल से हम | ||
प्यार करते हैं बहुत जिस हुस्ने-लाहासिल से हम | प्यार करते हैं बहुत जिस हुस्ने-लाहासिल से हम | ||
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+ | उफ़ ! मिटा पाए न जिसकी याद अपने दिल से हम | ||
+ | प्यार करते हैं बहुत उस हुस्ने-लाहासिल से हम | ||
गर्मिए लब की तपिश से सुब्ह पाते हैं हयात | गर्मिए लब की तपिश से सुब्ह पाते हैं हयात | ||
क़त्ल हो जाते हैं शब को, अब्रुए क़ातिल से हम | क़त्ल हो जाते हैं शब को, अब्रुए क़ातिल से हम | ||
− | बस | + | मुस्कुरा कर वो ये बोले और फिर शरमा गए |
+ | आपने हमको छुआ तो फिर गए कुछ खिल से हम | ||
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+ | बस, ख़ुदा का शुक्र कह कर, टाल देता है हमें | ||
हाल जब भी पूछते हैं इस दिले-बिस्मिल से हम | हाल जब भी पूछते हैं इस दिले-बिस्मिल से हम | ||
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इक झलक देखे बिना उठकर तेरी महफ़िल से हम | इक झलक देखे बिना उठकर तेरी महफ़िल से हम | ||
− | + | मुस्कराहट पर किसी की, खा गए धोका 'रक़ीब' | |
− | दिल लगा बैठे | + | दिल लगा बैठे हैं किस मग़रूर पत्थर दिल से हम |
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16:56, 10 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण
उफ़! मिटा पाए न उसकी याद अपने दिल से हम
प्यार करते हैं बहुत जिस हुस्ने-लाहासिल से हम
उफ़ ! मिटा पाए न जिसकी याद अपने दिल से हम
प्यार करते हैं बहुत उस हुस्ने-लाहासिल से हम
गर्मिए लब की तपिश से सुब्ह पाते हैं हयात
क़त्ल हो जाते हैं शब को, अब्रुए क़ातिल से हम
मुस्कुरा कर वो ये बोले और फिर शरमा गए
आपने हमको छुआ तो फिर गए कुछ खिल से हम
बस, ख़ुदा का शुक्र कह कर, टाल देता है हमें
हाल जब भी पूछते हैं इस दिले-बिस्मिल से हम
आएगा भी या नहीं अब वो सफ़ीना लौटकर
बारहा पूछा किये मझधार और साहिल से हम
कुछ तो है, जो कुछ नहीं तो, फिर ये उठता है सवाल
पास रहकर दूर क्यों हैं दोस्तो मंज़िल से हम
आरज़ू-ए-दीद में, बैठे हैं, कैसे जाएंगे ?
इक झलक देखे बिना उठकर तेरी महफ़िल से हम
मुस्कराहट पर किसी की, खा गए धोका 'रक़ीब'
दिल लगा बैठे हैं किस मग़रूर पत्थर दिल से हम