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"मखमली अहसास / रश्मि विभा त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर

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तुम्हारे होंठ
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गुलाब की पंखुड़ी हैं
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हिलती हैं जब
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साफगोई की हवा के तिरने से
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जज़्बात की शबनम के गिरने से
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हर बार मुझे
  
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तुम्हारी हथेलियाँ
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जो सोखती हैं
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तुमने जब मेरा सर सहलाया था
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कि तुमने रख दिए
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मेरे गालों पे नर्म फाहे
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बता दूँ तुम्हें
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मैंने तभी जाना—
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प्रेमी के हृदय में सबसे पहले उगा होगा
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इसलिए तो तुम्हारी तरह दिव्य है,
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और रूह को सुकून देने वाला है
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तभी तो ईश्वर ने भी उसे ढाला है
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तुम‐ सा वह
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फरिश्ता है
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हर घाव जो रिसता है
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उसपे मरहम मले
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दे दर्द से मुक्ति
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बिछ जाता है
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थकान के तले
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जब तुमने बाहें फैलाई थीं
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मेरे लिए
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और मैं आकर
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तुमसे लिपटी थी
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तो लगा था
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तुमने बिछा दिया है
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मेरे लिए
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एक घास का गलीचा हरा
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मैं हिरनी- सी कुलाचें मारने लगी थी
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दुनिया ने छील दिया है मुझे
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मेरी खुरदरी ज़िन्दगी
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इस हाल में
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चाहती है पनाह
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तुम्हारी बाहों के बुग्याल में
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ताकि उतर आए मुझमें
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तुम्हारा मखमली अहसास
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जो हर टीस भुला दे
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चैन की नींद सुला दे,
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वक्त के बिस्तर पर
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मैं जब लेटूँ
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अतीत की चादर ओढ़कर।
 
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11:22, 13 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण

तुम्हारे होंठ
गुलाब की पंखुड़ी हैं
ये पंखुड़ियाँ
हिलती हैं जब
साफगोई की हवा के तिरने से
जज़्बात की शबनम के गिरने से
तब
ख़ुशबू में लिपटे
तुम्हारे लफ़्ज़
महका देते हैं
हर बार मुझे

रेशम- सी हैं
तुम्हारी हथेलियाँ
जो सोखती हैं
मेरी आँखों की नमी
तुमने जब मेरा सर सहलाया था
तो तुम्हारी उँगलियों के
पोरों के निशान
पड़ गए
मेरे भीतर
उनसे मुझे पता चला
कि दुनिया की सबसे कोमल शय
तुम्हारी रूह है

तुम्हारे सीने से लगके
मुझे महसूस हुआ
कि तुमने रख दिए
मेरे गालों पे नर्म फाहे
आज जी चाहे
बता दूँ तुम्हें
मैंने तभी जाना—
कपास
प्रेमी के हृदय में सबसे पहले उगा होगा
इसलिए तो तुम्हारी तरह दिव्य है,
पवित्र है,
निष्कलंक है
और रूह को सुकून देने वाला है
तभी तो ईश्वर ने भी उसे ढाला है
मंदिर की जोत में,
तुम‐ सा वह
फरिश्ता है
हर घाव जो रिसता है
उसपे मरहम मले
दे दर्द से मुक्ति
बिछ जाता है
थकान के तले
जब तुमने बाहें फैलाई थीं
मेरे लिए
और मैं आकर
तुमसे लिपटी थी
तो लगा था
तुमने बिछा दिया है
मेरे लिए
एक घास का गलीचा हरा
मैं हिरनी- सी कुलाचें मारने लगी थी

दुनिया ने छील दिया है मुझे
मेरी खुरदरी ज़िन्दगी
इस हाल में
चाहती है पनाह
तुम्हारी बाहों के बुग्याल में
ताकि उतर आए मुझमें
तुम्हारा मखमली अहसास
जो हर टीस भुला दे
चैन की नींद सुला दे,
वक्त के बिस्तर पर
मैं जब लेटूँ
अतीत की चादर ओढ़कर।