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"खिलता गुलाब हो तुम / रश्मि विभा त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर

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मेरे ज़ख्मी पाँव पड़ते हैं
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जहाँ- जहाँ
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चूम लेता है हौले से
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मेरे दर्द को
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तुम्हारा मखमली अहसास—
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मेरी आत्मा में घोल दिया है तुमने
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अपना जो यह इत्र
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क्या बताऊँ कि है कितना पवित्र!!
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माथे पर तुमने जो रखा था
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वह बोसा गवाह है
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कि हर शिकन को मिटाता
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तुम्हारा स्पर्श
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पूजा का फूल है
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हर मुराद फलने लगी है
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नई उमंग नजर में पलने लगी है
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आँखों में है तुम्हारा अर्क
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महक रही हूँ मैं
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वक्त का झोंका
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जब भी आता है
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और महक जाती हूँ मैं
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नींद के झोंके में भी
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अब मुझे यही महसूस होता है—
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ख़ुशबू का ख़्वाब हो तुम
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दुनिया के जंगल में
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काँटों के बीच
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खिलता गुलाब हो तुम
 
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11:25, 13 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण

तुम्हारे नेह की नाज़ुक पंखुरियाँ
झर रही हैं
मन की तपती धरती पर
ज़िन्दगी के मौसम में बहार आ गई है
इन दिनों
मेरे ज़ख्मी पाँव पड़ते हैं
जहाँ- जहाँ
चूम लेता है हौले से
मेरे दर्द को
तुम्हारा मखमली अहसास—
मेरी आत्मा में घोल दिया है तुमने
अपना जो यह इत्र
क्या बताऊँ कि है कितना पवित्र!!
माथे पर तुमने जो रखा था
वह बोसा गवाह है
कि हर शिकन को मिटाता
तुम्हारा स्पर्श
पूजा का फूल है
हर मुराद फलने लगी है
नई उमंग नजर में पलने लगी है
आँखों में है तुम्हारा अर्क
महक रही हूँ मैं
वक्त का झोंका
जब भी आता है
और महक जाती हूँ मैं
नींद के झोंके में भी
अब मुझे यही महसूस होता है—
ख़ुशबू का ख़्वाब हो तुम
दुनिया के जंगल में
काँटों के बीच
खिलता गुलाब हो तुम