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22:20, 13 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण

हो गया मजबूर शातिर तिलमिलाने पर।
तीर जब पहुँचा नहीं अपने निशाने पर।

चौंकिये मत देखकर अंदाज़ मस्ती के,
आप आये हैं कलन्दर के ठिकाने पर।

छीन ले कोई हमारा हक़ नहीं मुमकिन,
नाम लिक्खा है ख़ुदा ने दाने दाने पर।

मुझको हैरत से लगा था देखने वाइज,
बात उसकी ना नुकुर बिन मान जाने पर।

झाँकता अपने गिरेबाँ में नहीं कोई,
और लगाता सिर्फ़ है तोहमत ज़माने पर।

आपके चेहरे की रंगत क्यों उड़ी साहिब,
उनके किस्से में हमारा नाम आने पर।

आँख पर अपनी भरोसा कीजिये ‘विश्वास’,
मत बदलिये रुख किसी के बरगलाने पर।