भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दर्द में भी गुनगुनाएँ / राकेश कुमार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राकेश कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:46, 16 फ़रवरी 2025 के समय का अवतरण

देखना सपना न छोड़ें, स्वप्न से ही लक्ष्य पायें।
जिंदगी बेदर्द है पर, दर्द में भी गुनगुनायें।

सोचना अच्छा मगर हर बार यह फलता नहीं है,
जान पर जिससे बनी हो बस उसी से दिल लगायें।

 सर्द है मौसम यहाँ का, नील नभ बदरंग-सा है,
चाहते बचना अगर फौरन कहीं पर घर बसायें।

क्या करेंगे याद रखकर नाम जो बस नाम के हैं,
है यही अच्छा कि उनको आप जल्दी भूल जाएँ।

साथ देने को ज़माना बाद में आता रहेगा,
पाँव पहले मार्ग पर अपने भरोसे ही बढ़ायें ।