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"आये थे थानेदार जिन्हें कल लताड़ के / अशोक अंजुम" के अवतरणों में अंतर
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आये थे थानेदार जिन्हें कल लताड़ के
वे ले गये मुहल्ले का खम्बा उखाड़ के
हैरत है रेस कछुए ही क्यों जीतें बारहा
देखे नहीं हैं रंग क्या तुमने जुगाड़ के
कुनबा जुटा है करने खुदाई यहाँ-वहाँ
अम्माजी चल बसी हैं कहीं माल गाड़ के
बीमा करा लो, कह रही हूँ कब से आप से
बीवी ने कहा रात को मुझसे दहाड़ के
पहरे पर था रखा जिसे हमने यक़ीन से
वो ले गया निकाल के पल्ले किवाड़ के
किन बन्दरों के हाथ में है संविधान उफ्!
डर है यही कि ये इसे रख दें न फाड़ के
हर एक शाख़ पर है उल्लुओं का बसेरा
रख दी है मेरे देश की सूरत बिगाड़ के