भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हर डगर चिल्लपों, हर सफ़र चिल्लपों / अशोक अंजुम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक अंजुम |अनुवादक= |संग्रह=अशोक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

23:16, 9 मार्च 2025 के समय का अवतरण

हर डगर चिल्लपों, हर सफ़र चिल्लपों
अब जिधर देखिए है उधर चिल्लपों

जागरण वे करा के बड़े ख़ुश हुए
कुल मुहल्ले रही रात-भर चिल्लपों

काम पूरा हुआ अब तो घर को चलें
क्या ज़रूरी मिलेगी न घर चिल्लपों

सारी धरती पर अब हर तरफ़ है यही
अब करेंगे चलो चाँद पर चिल्लपों

वो जो मीटिंग हुई शांति के नाम पर
शांति भयभीत थी देखकर चिल्लपों

ये जो बच्चे हैं नेमत ख़ुदा की हैं सब
है घर में मगर हर पहर चिल्लपों

ये जो संसद है मन्दिर है जनतंत्र का
इसके भीतर चले है मगर चिल्लपों