भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हों जो साहब जी द्वार पर बेटा / अशोक अंजुम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक अंजुम |अनुवादक= |संग्रह=अशोक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:34, 9 मार्च 2025 के समय का अवतरण
हों जो साहब जी द्वार पर बेटा !
कहना डैडी नहीं हैं घर बेटा !
में जो कहता हूँ तू नहीं सुनता ,
ध्यान तेरा है रे किधर बेटा ?
तेरी बीवी ने , तेरी मम्मी ने
घर को बनने न दिया घर बेटा !
जबसे आयी हैं बहूजी घर में
तब से निकले तुम्हारे पर बेटा !
वक्त की चाल न कल रखवा दे
तेरे पैरों पर मेरा सर बेटा !
सब यहाँ चर रहे हैं भारत को
तू भी मौका मिले तो चर बेटा !