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"दुनियादारों से / अरुण आदित्य" के अवतरणों में अंतर
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कि ये लाठी और गठरी ही मेरी दुनिया है | कि ये लाठी और गठरी ही मेरी दुनिया है | ||
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मुझे पड़ा रहने दो अपनी लाठी और गठरी के साथ । | मुझे पड़ा रहने दो अपनी लाठी और गठरी के साथ । | ||
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06:02, 11 मार्च 2025 के समय का अवतरण
तुम्हारी दुनिया में
कैसे समा सकता है मेरा गाँव ?
इतनी छोटी है तुम्हारी दुनिया
कि इसमें है सिर्फ़ स्वार्थ-भर जगह
और स्वप्न-भर विस्तार में बसा हुआ है मेरा गाँव
प्रेम-भर मेरी गठरी ही
नहीं समा पा रही इस स्वार्थ-भर जगह में
फिर स्वाभिमान-भर ऊँची ये लाठी कहाँ खड़ी करूँ ?
लाठी और गठरी के बिना
बेशक समा सकता हूँ मैं तुम्हारी दुनिया में
लेकिन कैसे छोड़ दूँ
इन दोनों में से एक भी चीज़
कि ये लाठी और गठरी ही मेरी दुनिया है
तुमको मुबारक़ हो तुम्हारी दुनिया
मुझे पड़ा रहने दो अपनी लाठी और गठरी के साथ ।