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"मंज़िल वाया जयपुर-बम्बई / अदनान कफ़ील दरवेश" के अवतरणों में अंतर
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मैं बदनसीब ख़ानदानी कारीगर
चूड़ियाँ बेचता था हज़ूर
फ़िलवक़्त मन्दा पड़ चुका था काम
मुश्किल हो रही थी गुज़र-बसर
सो जयपुर से बम्बई जा रहा था
अपनी क़िस्मत आज़माने
अकूत मायूसियों का बोझ ढोती रेल
जब छील रही थी पटरियाँ
आपने पूछा था मेरा नाम
और हवा में लहराई थी पिस्तौल
मैं समझ चुका था आगे का हाल
अपनी निजात की राह
दरअस्ल क़ुसूर तो मेरी पैदाइश का ही था,
आपका नहीं
क़त्ल !
वो कब हुआ ?
मैं ही आपकी पिस्तौल की गोली को चूमते हुए
अचानक गिर पड़ा था फ़र्श पर औंधे मुँह
मंज़िल तक पहुँचाने के लिए आपका शुक्रिया ।