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"नन्हे मियाँ चिश्ती / अदनान कफ़ील दरवेश" के अवतरणों में अंतर

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04:05, 14 मार्च 2025 के समय का अवतरण

उन तमाम बुज़ुर्गों के नाम, जिनकी मज़ार रात के अँधेरों और दिन के उजालों में तोड़ डाली गईं

दरअस्ल
दिन के जबड़े में थी
आपके मज़ार की एक-एक ईंट
आसमान था हर वक़्त आपका निगहबाँ
रात ने तो, बस,
सबकुछ बराबर कर दिया
चुपचाप…

इस तलातुम में आप ख़ुदा से लौ लगाए
सोते हैं चैन की नींद !
बहुत दिन जी लिए की तरह ही
बहुत दिन मर लिए आप ऐ बुज़ुर्ग !
क़यामत का दूर-दूर तक कोई निशान नहीं
रोज़े-हश्र में अभी काफ़ी वक़्त है
उससे पहले उठें
अपने मुसलमान होने की सज़ा भुगत लें ।