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हिंसक परम्पराएँ / नेहा नरुका
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गुरूवार को 23:11 बजे
माँ : “रोटी के लिए अबेर करवा दी जा मोड़ी ने !”
दादी : “मोड़ों छाती से चिपकाय के रखी जातीं है ?”
बुआ : “गोदी में लिवाय-लिवाय कें डुलनी बनाय दई है
मोड़ी ।”
मोड़ी।”
इत्यादि हिंसक वाक्य जब मुँह से निकलकर हवा में घुलते होंगे
अनिल जनविजय
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