"हसीन दिलरुबा की जान उसकी हथेली पर है / नेहा नरुका" के अवतरणों में अंतर
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सिर्फ़ बारिश की बूँदें उसकी देह को नहीं छू रही थीं | सिर्फ़ बारिश की बूँदें उसकी देह को नहीं छू रही थीं | ||
− | हाइवे से गुजरती निगाहें और दूर ढाबे पर बल्ब की रोशनी के बीच | + | हाइवे से गुजरती निगाहें और दूर ढाबे पर |
− | कढ़ाई माँजता एक उदास | + | बल्ब की रोशनी के बीच |
+ | कढ़ाई माँजता एक उदास शख़्स | ||
बार-बार हाइवे पर खड़ी हसीन दिलरुबा को | बार-बार हाइवे पर खड़ी हसीन दिलरुबा को | ||
छूने की चुपचाप कोशिश कर रहा था | छूने की चुपचाप कोशिश कर रहा था |
05:18, 14 मार्च 2025 के समय का अवतरण
रात के बारह बजकर पन्द्रह मिनट
बरसात का मौसम
हसीन दिलरुबा हाइवे पर खड़ी थी
सिर्फ़ बारिश की बूँदें उसकी देह को नहीं छू रही थीं
हाइवे से गुजरती निगाहें और दूर ढाबे पर
बल्ब की रोशनी के बीच
कढ़ाई माँजता एक उदास शख़्स
बार-बार हाइवे पर खड़ी हसीन दिलरुबा को
छूने की चुपचाप कोशिश कर रहा था
हसीन दिलरुबा अभी बस से उतरी है
“कुछ भी हो सकता है, लड़की !” उसके अन्दर बैठी औरत ने कहा
हसीन दिलरुबा ईयरफ़ोन कानों में लगाए ऐसे खड़ी रही
जैसे उसने कुछ सुना ही नहीं
जैसे ये रात के नहीं, दिन के बारह बजकर पन्द्रह मिनट हों
जैसे उसे पता ही नहीं रात और दिन के सवा बारह का अन्तर
उसकी जान उसकी हथेली पर थी
और वह बरसात की बून्दों की छुअन महसूस कर रही थी
बाहर का अँधेरा उसके अन्दर के अँधेरे में घुसपैठ कर रहा था
तभी एक बूढ़ा आदमी यहाँ से गुज़रा
और उसने हसीन दिलरुबा की सुरक्षा की परवाह व्यक्त की
अन्दर की औरत ने बूढ़े की हाँ में हाँ मिलाई
फिर बूढ़ा आदमी लगभग दौड़ते हुए
शहर की तरफ जाने वाले रास्ते में जाकर ग़ायब हो गया
इधर हसीन दिलरुबा की स्मृति के पहिये
कुछ साल पीछे की तरफ़ दौड़ने लगे —
दिन के सवा बारह या उससे कम या उससे ज़्यादा
क्या फ़र्क पड़ता है संख्या कितनी थी
महत्त्वपूर्ण ये है संख्या दिन की थी
उस चिर-परिचित शख़्स ने उसपर हमला कर दिया
वह घायल बिल्ली की तरह तड़पने लगी
पर कोई नहीं जान पा रहा था कि वह तड़प रही थी
सब कह रहे थे वह घर के अन्दर है और सुरक्षित है
फिर उसने धीरे-धीरे ख़ुद को खड़ा किया
अपने ज़ख़्मों पर आप ही दवाई लगाई
हसीन दिलरुबा ने अपने अन्दर ही औरत से कहा :
उसकी जान तो हमेशा हथेली पर थी !
एकाएक पास में उग आई ऑटो ड्राइवर की आकृति ने कहा :
आप इस तरफ़ हैं मैं आपको उस तरफ़ ढूँढ़ रहा था ।