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"यादों के रजनीगंधा (कविता) / संतोष श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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20:56, 22 मार्च 2025 के समय का अवतरण

मेरे लिए
बहुत कठिन हो जाता है
उन रास्तों पर चलना
जहाँ तुमने
अपनी यादों के रजनीगंधा
रोपे थे और कहा था

मैं अपने प्रेम को
तुम्हारी कलाई पर
ताबीज की तरह बाँध दूँगा
तुम बची रहोगी
हर बुरी नज़र से
देखो तुम्हारी पाजेब को
छू लेने को
कैसी उतावली हो रही हैं लहरें
कि अपनी गर्जना को
बदल लें रुनझुन में
सुना दें भीगा-सा राग
जी उठे समंदर
कहा था तुमने

वह मीठी आग
जिसकी पीली रोशनी में
हमने लिखे थे प्रेम गीत
वे प्रेम गीत
ठीक उन्हीं रास्तों पर
मेरे कदमों से
लिपट लिपट जाते हैं

जिंदगी वहीं ख़ामोश
खड़ी रह जाती है
और दूर धरती की धुरी पर
कालचक्र घूमता रहता है
कठिन हो जाता है समय
यादों के पाश में