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"सच के तो हैं कम ही साथी / प्रताप नारायण सिंह" के अवतरणों में अंतर

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सच के तो हैं कम ही साथी
 
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अधिक झूठ के संगी हैं  
 
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सभी जानते हैं सच क्या है
 
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किन्तु बहुत लाचारी है
 
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भौतिकता की अंध दौड़ में
 
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स्वार्थ सत्य पर भारी है
 
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स्याह भले कर्मों के चेहरे
 
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पर सपने सतरंगी हैं  
 
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बात दूसरों की जब आए
 
बात दूसरों की जब आए
 
गगन उठा तब लेते हैं
 
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कहकर "नमक बराबर", अपना
 
कहकर "नमक बराबर", अपना
 
झूठ पचा सब लेते हैं
 
झूठ पचा सब लेते हैं
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सर्वत्र प्रचुरता मिथ्या की
 
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सच की काफी तंगी है
 
सच की काफी तंगी है
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चौसर के चौखाने में सब
 
चौसर के चौखाने में सब
 
नित्य गोटियाँ फिट करते  
 
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छल खरीदते, शुचिता देकर  
 
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बेशर्मी के पग धरते
 
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चीर हरण कर डाला खुद का
 
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छवियाँ सब अधनंगी हैं
 
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12:17, 23 मार्च 2025 के समय का अवतरण

सच के तो हैं कम ही साथी

सच के तो हैं कम ही साथी
अधिक झूठ के संगी हैं

सभी जानते हैं सच क्या है
किन्तु बहुत लाचारी है
भौतिकता की अंध दौड़ में
स्वार्थ सत्य पर भारी है

स्याह भले कर्मों के चेहरे
पर सपने सतरंगी हैं

बात दूसरों की जब आए
गगन उठा तब लेते हैं
कहकर "नमक बराबर", अपना
झूठ पचा सब लेते हैं

सर्वत्र प्रचुरता मिथ्या की
सच की काफी तंगी है

चौसर के चौखाने में सब
नित्य गोटियाँ फिट करते
छल खरीदते, शुचिता देकर
बेशर्मी के पग धरते

चीर हरण कर डाला खुद का
छवियाँ सब अधनंगी हैं