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"आकाश और समुद्र / कंसतन्तीन फ़ोफ़अनफ़ / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

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आकाश हो तुम काला, पड़े सूरज की छाया  
 
आकाश हो तुम काला, पड़े सूरज की छाया  
 
मैं हूँ समुद्र अन्धेरा, इस पर नज़र रखता  
 
मैं हूँ समुद्र अन्धेरा, इस पर नज़र रखता  
लिटाई जाती गीली क़ब्रों में मृतकों की काया   
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लिटाई जाती गीली क़ब्रों में कैसे मृतकों की काया   
 
दफ़नाता उनमें तेरी रोशनी, मिट्टी से ढकता  
 
दफ़नाता उनमें तेरी रोशनी, मिट्टी से ढकता  
  
पर सुबह-सवेरे गर तुम रक्ताभ रहे होंगे,
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पर सुबह-सवेरे गर तुम रक्ताभ रहे होते,
तो शृंगार करना पड़ेगा तुमको फिर भोर ।
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तो शृंगार करना पड़ता तुमको फिर भोर ।
मोतियों की माँ से ही लहरें मुझे मिली होंगी,
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मोतियों की माँ से ही लहरें मुझे मिली होतीं,
 
औ’ फ़िरोज़ी रंग मेरा आपसी समझ का ज़ोर ।
 
औ’ फ़िरोज़ी रंग मेरा आपसी समझ का ज़ोर ।
  
और गर तुम एक रूखे बादल होंगे, हुज़ूर !
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और गर तुम होते एक रूखे बादल, हुज़ूर !
नीली भौंह पर बल पड़े हैं, गुस्से में हो चूर ।
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नीली भौंह पर बल पड़ते, गुस्से में होते चूर ।
तो मैं उठाऊँगा लहर अपनी एक सैलाबी,
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तो मैं भी उठाता लहर अपनी एक सैलाबी,
फिर आ मिलूँगा मैं तेरे उस तूफ़ान ख़िताबी ।
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फिर आ मिलता मैं तेरे, उस तूफ़ान ख़िताबी ।
  
 
'''मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
 
'''मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय'''

05:42, 28 मार्च 2025 के समय का अवतरण

आकाश हो तुम काला, पड़े सूरज की छाया
मैं हूँ समुद्र अन्धेरा, इस पर नज़र रखता
लिटाई जाती गीली क़ब्रों में कैसे मृतकों की काया
दफ़नाता उनमें तेरी रोशनी, मिट्टी से ढकता

पर सुबह-सवेरे गर तुम रक्ताभ रहे होते,
तो शृंगार करना पड़ता तुमको फिर भोर ।
मोतियों की माँ से ही लहरें मुझे मिली होतीं,
औ’ फ़िरोज़ी रंग मेरा आपसी समझ का ज़ोर ।

और गर तुम होते एक रूखे बादल, हुज़ूर !
नीली भौंह पर बल पड़ते, गुस्से में होते चूर ।
तो मैं भी उठाता लहर अपनी एक सैलाबी,
फिर आ मिलता मैं तेरे, उस तूफ़ान ख़िताबी ।

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता रूसी भाषा में पढ़िए
            Константин Фофанов
                  Небо и море

Ты — небо темное в светилах,
Я — море темное. Взгляни:
Как мертвецов в сырых могилах,
Я хороню твои огни.

Но если ты румяным утром
Опять окрасишься в зарю, —
Я эти волны перламутром
И бирюзою озарю;

И если ты суровой тучей
Нахмуришь гневную лазурь, —
Я подыму свой вал кипучий
И понесусь навстречу бурь…