"वर्जित चीजों की दुनिया / नाज़िम हिक़मत" के अवतरणों में अंतर
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शुरूआत हुई थी मेरे इस अभियान की — | शुरूआत हुई थी मेरे इस अभियान की — | ||
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फिर रेलगाड़ी से रवाना करके | फिर रेलगाड़ी से रवाना करके | ||
एक कोठरी में बन्द कर दिया जाना. | एक कोठरी में बन्द कर दिया जाना. | ||
− | उसका नौवाँ साल बीता है तीन दिन | + | उसका नौवाँ साल बीता है तीन दिन पहले । |
बरामदे में स्ट्रेचर पर पीठ के बल लेटा एक आदमी | बरामदे में स्ट्रेचर पर पीठ के बल लेटा एक आदमी | ||
मर रहा है मुँह बाए हुए, | मर रहा है मुँह बाए हुए, | ||
− | क़ैद के लम्बे समय का दुख है उसके चेहरे | + | क़ैद के लम्बे समय का दुख है उसके चेहरे पर । |
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शुरूआत में, एक बन्द दरवाज़े की | शुरूआत में, एक बन्द दरवाज़े की | ||
छिहत्तर दिनों की मौन अदावत, | छिहत्तर दिनों की मौन अदावत, | ||
− | फिर सात हफ़्तों तक एक जहाज़ के पेंदे | + | फिर सात हफ़्तों तक एक जहाज़ के पेंदे में । |
फिर भी मैनें हार नहीं मानी थी : | फिर भी मैनें हार नहीं मानी थी : | ||
मेरा सर | मेरा सर | ||
− | मेरे पक्ष में खड़ा एक दूसरा इनसान | + | मेरे पक्ष में खड़ा एक दूसरा इनसान था । |
चाहे जितनी बार वे कतारबद्ध खड़े हुए हों मेरे सामने, | चाहे जितनी बार वे कतारबद्ध खड़े हुए हों मेरे सामने, | ||
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जब मुझे सज़ा सुनाई जा रही थी, उन्हें एक ही चिन्ता थी : | जब मुझे सज़ा सुनाई जा रही थी, उन्हें एक ही चिन्ता थी : | ||
कि रोबदार दिखें वे। | कि रोबदार दिखें वे। | ||
− | मगर वे ऐसा दिखे | + | मगर वे ऐसा दिखे नहीं । |
वे इनसानों की बजाए चीज़ों की तरह नज़र आ रहे थे : | वे इनसानों की बजाए चीज़ों की तरह नज़र आ रहे थे : | ||
दीवार घड़ियों की तरह, मूर्ख | दीवार घड़ियों की तरह, मूर्ख | ||
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ढेर सारी उम्मीद और ढेर सारा दुख. | ढेर सारी उम्मीद और ढेर सारा दुख. | ||
फ़ासले बहुत कम. | फ़ासले बहुत कम. | ||
− | चौपाया प्राणियों में सिर्फ़ | + | चौपाया प्राणियों में सिर्फ़ बिल्लियाँ । |
मैं वर्जित चीज़ों की दुनिया में रहता हूँ ! | मैं वर्जित चीज़ों की दुनिया में रहता हूँ ! | ||
जहाँ वर्जित है : | जहाँ वर्जित है : | ||
− | अपनी महबूबा के गालों को | + | अपनी महबूबा के गालों को सूँघना । |
जहाँ वर्जित है : | जहाँ वर्जित है : | ||
− | अपने बच्चों के साथ एक ही मेज़ पर बैठकर भोजन | + | अपने बच्चों के साथ एक ही मेज़ पर बैठकर भोजन करना । |
जहाँ वर्जित है : | जहाँ वर्जित है : | ||
बीच में सींखचों या किसी चौकीदार के बिना | बीच में सींखचों या किसी चौकीदार के बिना | ||
− | अपने भाई या माँ से बात | + | अपने भाई या माँ से बात करना । |
जहाँ वर्जित है : | जहाँ वर्जित है : | ||
अपनी लिखी किसी चिट्ठी को चिपकाना | अपनी लिखी किसी चिट्ठी को चिपकाना | ||
− | या चिपकाई हुई किसी चिट्ठी को | + | या चिपकाई हुई किसी चिट्ठी को पाना । |
जहाँ वर्जित है : | जहाँ वर्जित है : | ||
− | सोने जाते समय बत्ती | + | सोने जाते समय बत्ती बुझाना । |
जहाँ वर्जित है : | जहाँ वर्जित है : | ||
− | चौपड़ | + | चौपड़ खेलना । |
और ऐसा नहीं है कि यह वर्जित नहीं है, | और ऐसा नहीं है कि यह वर्जित नहीं है, | ||
मगर जो आप छिपा सकते हैं अपने दिल में या जो आपके हाथ में है | मगर जो आप छिपा सकते हैं अपने दिल में या जो आपके हाथ में है | ||
− | वह है प्यार करना, सोचना और | + | वह है प्यार करना, सोचना और समझना । |
− | बरामदे में स्ट्रेचर पर पड़े आदमी की मौत हो | + | बरामदे में स्ट्रेचर पर पड़े आदमी की मौत हो गई । |
− | वे उसे ले गए | + | वे उसे ले गए कहीं । |
अब न तो कोई उम्मीद और न ही कोई दुख, | अब न तो कोई उम्मीद और न ही कोई दुख, | ||
न रोटी, न पानी, | न रोटी, न पानी, | ||
पंक्ति 72: | पंक्ति 74: | ||
न स्त्रियों की हसरत, न चौकीदार, न खटमल, | न स्त्रियों की हसरत, न चौकीदार, न खटमल, | ||
और कोई बिल्ली भी नहीं बैठकर उसे ताकते रहने के लिए. | और कोई बिल्ली भी नहीं बैठकर उसे ताकते रहने के लिए. | ||
− | वह धन्धा तो अब खलास, | + | वह धन्धा तो अब खलास, ख़तम । |
मगर मेरा काम तो अभी जारी है : | मगर मेरा काम तो अभी जारी है : |
06:44, 29 मार्च 2025 का अवतरण
नौवीं सालगिरह
घुटनों-घुटनों बर्फ़ वाली एक रात को
शुरूआत हुई थी मेरे इस अभियान की —
खाने की मेज़ से खींचकर,
पुलिस की गाड़ी में लादा जाना,
फिर रेलगाड़ी से रवाना करके
एक कोठरी में बन्द कर दिया जाना.
उसका नौवाँ साल बीता है तीन दिन पहले ।
बरामदे में स्ट्रेचर पर पीठ के बल लेटा एक आदमी
मर रहा है मुँह बाए हुए,
क़ैद के लम्बे समय का दुख है उसके चेहरे पर ।
दुखद और सम्पूर्ण अकेलेपन को
याद करता हूँ मैं,
अकेलापन जैसे किसी पागल या मृतक का :
शुरूआत में, एक बन्द दरवाज़े की
छिहत्तर दिनों की मौन अदावत,
फिर सात हफ़्तों तक एक जहाज़ के पेंदे में ।
फिर भी मैनें हार नहीं मानी थी :
मेरा सर
मेरे पक्ष में खड़ा एक दूसरा इनसान था ।
चाहे जितनी बार वे कतारबद्ध खड़े हुए हों मेरे सामने,
मैं उनमें से ज़्यादातर के चेहरे भूल गया हूँ
मुझे याद है तो सिर्फ़ एक लम्बी नुकीली नाक.
जब मुझे सज़ा सुनाई जा रही थी, उन्हें एक ही चिन्ता थी :
कि रोबदार दिखें वे।
मगर वे ऐसा दिखे नहीं ।
वे इनसानों की बजाए चीज़ों की तरह नज़र आ रहे थे :
दीवार घड़ियों की तरह, मूर्ख
व घमण्डी,
और हथकड़ियों-बेड़ियों की तरह उदास और दयनीय.
जैसे बिना मकानों और सड़कों के कोई शहर.
ढेर सारी उम्मीद और ढेर सारा दुख.
फ़ासले बहुत कम.
चौपाया प्राणियों में सिर्फ़ बिल्लियाँ ।
मैं वर्जित चीज़ों की दुनिया में रहता हूँ !
जहाँ वर्जित है :
अपनी महबूबा के गालों को सूँघना ।
जहाँ वर्जित है :
अपने बच्चों के साथ एक ही मेज़ पर बैठकर भोजन करना ।
जहाँ वर्जित है :
बीच में सींखचों या किसी चौकीदार के बिना
अपने भाई या माँ से बात करना ।
जहाँ वर्जित है :
अपनी लिखी किसी चिट्ठी को चिपकाना
या चिपकाई हुई किसी चिट्ठी को पाना ।
जहाँ वर्जित है :
सोने जाते समय बत्ती बुझाना ।
जहाँ वर्जित है :
चौपड़ खेलना ।
और ऐसा नहीं है कि यह वर्जित नहीं है,
मगर जो आप छिपा सकते हैं अपने दिल में या जो आपके हाथ में है
वह है प्यार करना, सोचना और समझना ।
बरामदे में स्ट्रेचर पर पड़े आदमी की मौत हो गई ।
वे उसे ले गए कहीं ।
अब न तो कोई उम्मीद और न ही कोई दुख,
न रोटी, न पानी,
न आज़ादी, न क़ैद,
न स्त्रियों की हसरत, न चौकीदार, न खटमल,
और कोई बिल्ली भी नहीं बैठकर उसे ताकते रहने के लिए.
वह धन्धा तो अब खलास, ख़तम ।
मगर मेरा काम तो अभी जारी है :
मेरा सर जारी रखे है प्यार करना, सोचना और समझना,
मेरा नपुंसक क्रोध खाता ही जा रहा है मुझे,
और सुबह से ही टीस रहा है मेरा कलेजा...
20 जनवरी 1946
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल