"तुम्हारी याद एक ख़ूबसूरत शय है / नाज़िम हिक़मत / मनोज पटेल" के अवतरणों में अंतर
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+ | और वह सबसे अच्छा शब्द जो मैं तुमसे कहना चाहता हूँ, | ||
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'''25 सितम्बर 1945''' | '''25 सितम्बर 1945''' |
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रात 9 से 10 के बीच लिखी गई कविताएँ
पत्नी पिराए के लिए
21 सितम्बर 1945
हमारा बच्चा बीमार है ।
और पिता जेल में हैं ।
तुम्हारे थके हाथों में तुम्हारा सर बहुत भारी हो चला है ।
हमारी तक़दीर अक्स है दुनिया की तक़दीर की ।
इनसान बेहतर दिन लेकर आएगा इनसान तक ।
हमारा बच्चा ठीक हो जाएगा ।
उसके पिता जेल से बाहर आ जाएँगे ।
तुम्हारी सुनहली आँखों की गहराइयाँ मुस्कुराएँगी ।
हमारी तक़दीर अक्स है दुनिया की तक़दीर की ।
०००
22 सितम्बर 1945
मैं एक किताब पढ़ता हूँ :
तुम उसमें हो ।
एक गीत सुनता हूँ :
तुम उसमें हो ।
अपनी रोटी खाने बैठता हूँ :
तुम मेरे सामने बैठी हो ।
मैं काम करता हूँ :
तुम ज्यों मेरे सामने रहती हो ।
तुम, जो हमेशा तैयार और इच्छुक रहा करती हो :
हम बात नहीं कर सकते एक-दूसरे से,
नहीं सुन सकते एक-दूसरे की आवाज़ :
तुम मेरी विधवा हो आठ बरस से !
०००
24 सितम्बर 1945
सबसे अच्छे समुद्र को अभी पार किया जाना बाक़ी है,
सबसे अच्छे बच्चे को अभी जन्म लेना है,
हमारे सबसे अच्छे दिनों को अभी जिया जाना है,
और वह सबसे अच्छा शब्द जो मैं तुमसे कहना चाहता हूँ,
अभी तक कहा नहीं मैंने !
०००
25 सितम्बर 1945
नौ बज गए हैं ।
चौराहे का घण्टाघर बजा रहा है गज़र,
बन्द ही होने वाले होंगे बैरक के दरवाज़े ।
क़ैद कुछ ज़्यादा ही लम्बी हो गई इस बार :
आठ साल ...
ज़िन्दगी उम्मीद का ही दूसरा नाम है, मेरी जान !
ज़िन्दा रहना भी, तुम्हें प्यार करने की तरह
संजीदा काम है ।
००
26 सितम्बर 1945
उन्होंने हमें पकड़कर बन्दी बना लिया,
मुझे चारदीवारी के भीतर,
और तुम्हें बाहर ।
मगर ये कुछ भी नहीं ।
इससे बुरा तो तब होता है
जब लोग — जाने या अनजाने —
अपने भीतर ही जेल लिए फिरते हैं ...
ज़्यादातर लोग ऐसी ही हालत में हैं
ईमानदार, मेहनतकश, भले लोग
जो उतना ही प्यार किए जाने के क़ाबिल हैं,
जितना मैं तुम्हें करता हूँ ...!
००
30 सितम्बर 1945
तुम्हें याद करना एक ख़ूबसूरत शय है
जो उम्मीद देती है मुझे,
जैसे सबसे ख़ूबसूरत गीत को सुनना
दुनिया की सबसे मधुर आवाज़ में ।
मगर सिर्फ़ उम्मीद ही मेरे लिए काफ़ी नहीं ।
अब गीत सुनकर ही नहीं रह जाना चाहता मैं —
गाना चाहता हूँ उन्हें ...!
०००
अनुवाद : मनोज पटेल