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"जेल में रात नौ बजे बत्ती बुझने के समय / नाज़िम हिक़मत / वीरेन डंगवाल" के अवतरणों में अंतर

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09:54, 29 मार्च 2025 का अवतरण

’रात नौ से दस बजे के बीच’ शृंखला की ये कविताएँ नाज़िम हिकमत ने अपनी पत्नी पिराये के लिए लिखी थीं। पिराये नाज़िम की दूसरी पत्नी थीं। नाज़िम हिकमत ने उनसे यह वादा किया था कि हर रोज़ रात में इस समय वे सिर्फ़ उन्हीं के बारे में सोचेंगे ।

एक

कितना ख़ुशनुमा है तुम्हारे बारे में सोचना
मौत और जीत की ख़बरों के बीच
जेल में
जब कि मैं चालीस पार ...

कितना सुन्दर है तुम्हारे बारे में सोचना :

तुम्हारे हाथ सुस्ताते नीले कपड़े पर
तुम्हारे बाल घने-भारी और मुलायम
जैसे मेरे प्यारे इस्तम्बूल की धरती ...

तुम्हें प्यार करने का सुख
गोया एक दूसरा शख़्स है मेरे भीतर ...
जिरेनियम की पत्तियों की तीख़ी महक मेरी उँगलियों में एक धुपैली ख़ामोशी,
और देह की पुकार एक गर्म
गहरा अन्धेरा
चमकीली सुर्ख़ रेखाओं से द्विभाजित ...

कितना सुन्दर तुम्हारे बारे में सोचना,
तुम्हारी बाबत लिखना,
जेल में बैठे तुम्हें याद करना :
इस या उस दिन फ़लां - फ़लां जगह तुमने जो कहा,
शब्द ठीक-ठीक वही नहीं
मगर उनके आभामण्डल की दुनिया ...

कितना सुन्दर है तुम्हारे बारे में सोचना  !
मुझे लकड़ी से गढ़ना चाहिए तुम्हारे लिए कुछ —
कोई बक्सा
कोई छल्ला —
और बुन देना चाहिए क़रीब तीन मीटर उम्दा रेशम
और कूदकर
तनते
और झकझोरते अपनी खिड़की के लौह - सींखचे
मुझे चिल्ला - चिल्ला कर कह देनी चाहिई
वे बातें जो मैं तुम्हारे लिए लिखता हूँ
दुग्ध - धवल नील स्वतंत्रता के लिए ...

कितना सुन्दर है तुम्हारे बारे में सोचना :
मौत और जीत की ख़बरों के बीच
जेल में
जबकि मैं
चालीस पार !

अँग्रेज़ी से अनुवाद : वीरेन डंगवाल