"जेल में रात नौ बजे बत्ती बुझने के समय / नाज़िम हिक़मत / वीरेन डंगवाल" के अवतरणों में अंतर
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+ | क्या वह घर में है ? या बाहर कहीं ? | ||
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+ | शायद उसने अभी-अभी उठाई अपनी बाँह — | ||
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+ | सबसे सुन्दर बच्चा | ||
+ | अभी बड़ा नहीं हुआ । | ||
+ | अपने सबसे सुन्दर दिन | ||
+ | अभी देखे नहीं हमने । | ||
+ | और सबसे सुन्दर शब्द जो मैं तुमसे कहना चाहता था | ||
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+ | नौ बजे. | ||
+ | गज़र बजा शहर के चौराहे पर | ||
+ | किसी भी क्षण बन्द हो जाएंँगे वार्ड के दरवाज़े । | ||
+ | इस बार कुछ ज़्यादा ही लम्बी खिंची जेल : | ||
+ | ... आठ साल । | ||
+ | जीना उम्मीद का मामला है मेरी प्यारी । | ||
+ | जीना | ||
+ | एक संगीन मामला है | ||
+ | तुम्हें प्यार करने की तरह | ||
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+ | '''२६ सितम्बर १९४५''' | ||
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+ | उन्होंने हमें पकड़ लिया, | ||
+ | उन्होंने हमें तालाबन्द किया : | ||
+ | मुझे दीवारों के भीतर, | ||
+ | तुम्हें बाहर । | ||
+ | मगर यह कुछ नहीं । | ||
+ | सबसे बुरा होता है | ||
+ | जब लोग — जाने-अनजाने — | ||
+ | अपने भीतर क़ैद्ख़ाने लिए चलते हैं ... | ||
+ | ज़्यादातर लोग ऐसा करने को मजबूर हुए हैं, | ||
+ | ईमानदार, मेहनती, भले लोग | ||
+ | जो उतना ही प्यार करने लायक हैं | ||
+ | जितना मैं तुम्हें करता हूँ ... | ||
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+ | '''३० सितम्बर १९४५''' | ||
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+ | तुम्हारे बारे में सोचना सुन्दर है | ||
+ | और उम्मीद भरा | ||
+ | जैसे सुनना दुनिया की सबसे बढ़िया आवाज़ को | ||
+ | गाना सबसे प्यारा गीत । | ||
+ | |||
+ | मगर उम्मीद काफ़ी नहीं मेरे लिए : | ||
+ | मैं अब सिर्फ़ सुनते ही नहीं रहना चाहता, | ||
+ | मैं गाना चाहता हूँ गीत ... | ||
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+ | '''६ अक्टूबर १९४५''' | ||
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+ | बादल गुज़रते हैं लदे हुए ख़बरों से । | ||
+ | मैं मसलता हूँ वह ख़त हाथों में जो आया ही नहीं । | ||
+ | मेरा दिल है मेरी पलकों की कोरों पर । | ||
+ | असीसता पृथ्वी को जो विलीन होती जाती दूरी में । | ||
+ | मैं पुकारना चाहता हूँ - "पि रा ये ! | ||
+ | पि रा ये !" | ||
+ | ००० | ||
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : वीरेन डंगवाल''' | '''अँग्रेज़ी से अनुवाद : वीरेन डंगवाल''' | ||
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10:13, 29 मार्च 2025 के समय का अवतरण
’रात नौ से दस बजे के बीच’ शृंखला की ये कविताएँ नाज़िम हिकमत ने अपनी पत्नी पिराये के लिए लिखी थीं। पिराये नाज़िम की दूसरी पत्नी थीं। नाज़िम हिकमत ने उनसे यह वादा किया था कि हर रोज़ रात में इस समय वे सिर्फ़ उन्हीं के बारे में सोचेंगे ।
एक
कितना ख़ुशनुमा है तुम्हारे बारे में सोचना
मौत और जीत की ख़बरों के बीच
जेल में
जब कि मैं चालीस पार ...
कितना सुन्दर है तुम्हारे बारे में सोचना :
तुम्हारे हाथ सुस्ताते नीले कपड़े पर
तुम्हारे बाल घने-भारी और मुलायम
जैसे मेरे प्यारे इस्तम्बूल की धरती ...
तुम्हें प्यार करने का सुख
गोया एक दूसरा शख़्स है मेरे भीतर ...
जिरेनियम की पत्तियों की तीख़ी महक मेरी उँगलियों में एक धुपैली ख़ामोशी,
और देह की पुकार एक गर्म
गहरा अन्धेरा
चमकीली सुर्ख़ रेखाओं से द्विभाजित ...
कितना सुन्दर तुम्हारे बारे में सोचना,
तुम्हारी बाबत लिखना,
जेल में बैठे तुम्हें याद करना :
इस या उस दिन फ़लां - फ़लां जगह तुमने जो कहा,
शब्द ठीक-ठीक वही नहीं
मगर उनके आभामण्डल की दुनिया ...
कितना सुन्दर है तुम्हारे बारे में सोचना !
मुझे लकड़ी से गढ़ना चाहिए तुम्हारे लिए कुछ —
कोई बक्सा
कोई छल्ला —
और बुन देना चाहिए क़रीब तीन मीटर उम्दा रेशम
और कूदकर
तनते
और झकझोरते अपनी खिड़की के लौह - सींखचे
मुझे चिल्ला - चिल्ला कर कह देनी चाहिई
वे बातें जो मैं तुम्हारे लिए लिखता हूँ
दुग्ध - धवल नील स्वतंत्रता के लिए ...
कितना सुन्दर है तुम्हारे बारे में सोचना :
मौत और जीत की ख़बरों के बीच
जेल में
जबकि मैं
चालीस पार !
०००
२० सितम्बर १९४५
इतनी देर गए
पतझड़ की इस रात
मैं भरा हूँ तुम्हारे शब्दों से
शब्द
अन्तहीन जैसे समय और पदार्थ
नग्न जैसे आँखें
भारी जैसे हाथ
और चमकीले जैसे सितारे
तुम्हारे शब्द आए
तुम्हारे दिल, देह और दिमाग़ से ।
माँ
पत्नी
और दोस्त ।
वे थे उदास - पीड़ादायी, प्रसन्न - उम्मीदभरे बहादुर —
तुम्हारे शब्द मानवीय थे ...
०००
२१ सितम्बर १९४५
हमारा बेटा बीमार है
उसका पिता है जेल में
थके हाथों में तुम्हारा भारी सिर
हमारी क़िस्मत है दुनिया की क़िस्मत जैसी ...
लोग लाते हैं अच्छे दिन
हमारा बेटा ठीक हो जाता है
जेल से बाहर आ जाता है उसका पिता
तुम्हारी सुनहली आँखें मुस्कुराती हैं:
हमारी क़िस्मत है दुनिया की क़िस्मत जैसी ।
०००
२२ सितम्बर १९४५
मैं एक किताब पढ़ता हूँ
तुम हो उनमें
मैं एक गीत सुनता हूँ
तुम हो उनमें
मैं रोटी खाता हूँ
तुम मेरे सामने बैठी हो;
मैं काम करता हूँ
और तुम बैठी देखती हो मुझे ।
तुम, जो हो हर कहीं मेरी 'सदा विद्यमान'
मैं तुमसे बात नहीं कर सकता,
हम एक दूसरे की आवाज़ें नहीं सुन सकते :
तुम मेरी आठ साल से विधवा ...
०००
२३ सितम्बर १९४५
वह क्या कर रही होगी अभी
ठीक अभी, इसी पल ?
क्या वह घर में है ? या बाहर कहीं ?
क्या वह काम कर रही है ? लेटी है ? या खड़ी है ?
शायद उसने अभी-अभी उठाई अपनी बाँह —
वाह, ऐसे में कैसे उसकी गोरी गदबदी कलाई उघड़ जाती है !
वह क्या कर रही होगी अभी ?
ठीक अभी ? इसी पल ?
शायद वह थपथपा रही है
गोद में एक बिल्ली का बच्चा ।
या शायद वह टहल रही है, रखने को ही एक क़दम —
वे प्यारे पाँव जो ले आते हैं उसे सीधे मुझ तक
मेरे इन अन्धेरे दिनों में —
और वह किस चीज़ के बारे में सोच रही है —
मेरे ?
उफ़्फ़ ! मुझे नहीं मालूम
गली क्यों नहीं ये सेमें ?
या शायद
क्यों ज़्यादातर लोग हैं इतने नाख़ुश ?
वह क्या कर रही होगी अभी ?
ठीक अभी ? इसी पल ?
०००
२४ सितम्बर १९४५
सबसे सुन्दर समुद्र
अभी तक लाँघा नहीं गया ।
सबसे सुन्दर बच्चा
अभी बड़ा नहीं हुआ ।
अपने सबसे सुन्दर दिन
अभी देखे नहीं हमने ।
और सबसे सुन्दर शब्द जो मैं तुमसे कहना चाहता था
अभी कहे नहीं मैंने ...
०००
२५ सितम्बर १९४५
नौ बजे.
गज़र बजा शहर के चौराहे पर
किसी भी क्षण बन्द हो जाएंँगे वार्ड के दरवाज़े ।
इस बार कुछ ज़्यादा ही लम्बी खिंची जेल :
... आठ साल ।
जीना उम्मीद का मामला है मेरी प्यारी ।
जीना
एक संगीन मामला है
तुम्हें प्यार करने की तरह
०००
२६ सितम्बर १९४५
उन्होंने हमें पकड़ लिया,
उन्होंने हमें तालाबन्द किया :
मुझे दीवारों के भीतर,
तुम्हें बाहर ।
मगर यह कुछ नहीं ।
सबसे बुरा होता है
जब लोग — जाने-अनजाने —
अपने भीतर क़ैद्ख़ाने लिए चलते हैं ...
ज़्यादातर लोग ऐसा करने को मजबूर हुए हैं,
ईमानदार, मेहनती, भले लोग
जो उतना ही प्यार करने लायक हैं
जितना मैं तुम्हें करता हूँ ...
०००
३० सितम्बर १९४५
तुम्हारे बारे में सोचना सुन्दर है
और उम्मीद भरा
जैसे सुनना दुनिया की सबसे बढ़िया आवाज़ को
गाना सबसे प्यारा गीत ।
मगर उम्मीद काफ़ी नहीं मेरे लिए :
मैं अब सिर्फ़ सुनते ही नहीं रहना चाहता,
मैं गाना चाहता हूँ गीत ...
०००
६ अक्टूबर १९४५
बादल गुज़रते हैं लदे हुए ख़बरों से ।
मैं मसलता हूँ वह ख़त हाथों में जो आया ही नहीं ।
मेरा दिल है मेरी पलकों की कोरों पर ।
असीसता पृथ्वी को जो विलीन होती जाती दूरी में ।
मैं पुकारना चाहता हूँ - "पि रा ये !
पि रा ये !"
०००
अँग्रेज़ी से अनुवाद : वीरेन डंगवाल