भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"धूल की समृद्धि / संतोष श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:31, 30 मार्च 2025 के समय का अवतरण

चिड़िया धूल में नहाती
संकेत देती है वर्षा का
वर्षा चाहे कितनी भी
घुमड़,घुमड़ बरसे
नहीं मिटा पाती धूल को

पानी में भीगी धूल
वर्षा के विदा होते ही
सूरज से ताप पा
अंगड़ाई ले
फिर दौड़ने लगती है
हवा के संग

घर का कोना-कोना
हर सामान ,असबाब पर
धूल आराम फरमाती है
कितना ही झाड़ो,फटकारो
उड़कर फिर बैठ जाती है
वहीं की वहीं

माथे पर पसीने की बूंदों में
जब धूल समाती है
तब सार्थक होता है श्रम
धूल में नहा कर ही
आदमी आदमी कहलाता है

आंधी ,बारिश ,ओले में
आकार खोते पर्वत
धूल को पा फिर
छूने लगते हैं ऊँचाइयाँ

पाषाण युग से अब तक
जाने कितनी कथाओं को
समेटे धूल
पर्वतों से उतरकर ,झरनों,
नदियों संग बहती
आदमी को
सुनाती रहती है
बीती कथाओं का जादू
जिनमें होते हैं
हमारे पूर्वजों के अवशेष,
आस्था और विश्वास
धूल का कोष
बहुत समृद्ध है
इस धरती पर