भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्रेम रंग की होली / संतोष श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:05, 30 मार्च 2025 के समय का अवतरण

तुमने आज पुकारा मुझको
हो गए हर पल रंग सुनहरे
भीगा मन का तार तार
रंग गई सांझ सकारे होली

टेसू के फूलों ने रंग दी
चूनर मेरी झीनी झीनी
पुरवईया फागुन की लाई
फाग सुरीले ,गीत रसीले
भंवरों की टोली ने खेली
फागुन के फूलों से होली

उड़त गुलाल पीत रंग छाया
बेसुध कर गई भांग नशीली
कैसी तान ये छेड़ी प्रीतम
खुद मतवाली हो गई होली

रंग न जाने हिंदू-मुस्लिम
रंग न जाने काबा काशी
रंग उतर आते जब दिल में
रूहानी हो जाती होली

अब के बरस के फागुन में
बस यही दुआ है प्रभु तुझसे
मिट जाए नफ़रत की खाई
तब खिले प्रेम रंग की होली