भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"यक़ीं तुम ये दिलाते हो कि दरिया है बड़ा गहरा / सत्यवान सत्य" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सत्यवान सत्य |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:38, 31 मार्च 2025 के समय का अवतरण
यक़ीं तुम ये दिलाते हो कि दरिया है बड़ा गहरा
नहीं इसका कभी पानी हमारी झील में ठहरा
बगावत पर चिरागाँ लग रहे हैं तो ज़रूरी है
हवाओं से हटा दें आप अब हर ओर से पहरा
यक़ीं के आइने में आज जब भी देखता हूँ तो
नजर आता है धुँधला क्यों मुझे हर एक का चेहरा
उठाए फ़न हजारों नाग जिस पर रक्स करते हैं
सियासत हो गयी है आज वह इक बीन का लहरा
अगरचे मौन है लेकिन रियाया जानती है सब
भले नाकामियों पर ख़ूब तू परचम यहाँ फहरा
तुम्हारी याद के गर गुल सबा इस ओर ले आती
महक उठता नहीं क्या एक दिन दिल का मेरा सहरा