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|वर्ष=2025
|भाषा=हिन्दी
|विषय=मदन कश्यप जितने प्रेम की कविता इस लोक को सम्बोधित कविता है। वह इसी छोटे, लेकिन मनुष्य के कवि हैंलिए फिर भी बहुत बड़े लोक को जीना चाहती है। यह देह जो नश्वर है, उतने ही प्रकृति, जीवन राग व संघर्ष उसके लिए बहुत कुछ है क्योंकि इसी देह के कवि भी। समाज व परिवार, सम्वेदना व करुणा उनमें भरपूर झरोखे पर बैठकर आँखें उस दुनिया को देखती हैं जिसे अन्तत: हमें जीना है।
|शैली=मुक्तछन्द
|पृष्ठ=108
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