भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हो नहीं सकती सुरक्षा अब कँटीले तार से / अभिषेक कुमार सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अभिषेक कुमार सिंह |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

23:41, 17 अप्रैल 2025 के समय का अवतरण

हो नहीं सकती सुरक्षा अब कँटीले तार से
मिल चुके हैं चोर सारे घर के पहरेदार से

लोग जो उतरे अभी हैं चमचमाती कार से
भूख पर चर्चा करेंगे बैठ कर विस्तार से

रात के विज्ञापनों ने ढक लिया है चाँद को
रौशनी होने लगी है दूर हर व्यापार से

सांस लेने की नई शर्तें हैं लागू अब यहाँ
धड़कनें भी लिंक होगी आपके आधार से

इक अदद उपभोक्ता भर रह गया है आदमी
आदतें सबकी नियंत्रित है यहाँ बाज़ार से

इस ज़माने की ख़ुशी को लग गई किसकी नज़र
रौनकें ग़ायब हुई जाती हैं हर त्यौहार से

खुद ही सारी उलझनों का हल बताती जाएगी
जिंदगी से बात करना सीखिए तो प्यार से