भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कर देगा मुग्ध आपको खिलना पलाश का / अभिषेक कुमार सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अभिषेक कुमार सिंह |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:44, 17 अप्रैल 2025 के समय का अवतरण
कर देगा मुग्ध आपको खिलना पलाश का
मैं क्या सुनाऊँ आपको किस्सा पलाश का
सुस्ता रहे हैं धूप की डोली के सब कहार
सड़कों पर बिछ गया है बिछौना पलाश का
चलती है जब बसंत में आकर्षणों की रेल
चलता है साथ-साथ ही इक्का पलाश का
अंधा विकासवाद कहीं चीर ही न दे
आरी पर है रखा हुआ सीना पलाश का
जीवन के इस अरण्य के उजड़े दयार में
होना तुम्हारा लगता है होना पलाश का
माना कि है हसीन गुलाबों का रंग-रूप
लेकिन मुझे पसंद है चेहरा पलाश का
मरते हुये मनुष्य को समझाये कौन अब
कितना ज़रूरी है यहाँ जीना पलाश का