भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वो रात हिज्र की हो या वो रात हो विसाल की / मधु 'मधुमन'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधु 'मधुमन' |अनुवादक= |संग्रह=उजालो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:29, 27 अप्रैल 2025 के समय का अवतरण
वो रात हिज्र की हो या वह रात हो विसाल की
गुज़रती है दिलों पर कैफ़ियत बहुत कमाल की
तुम्हारे साथ चाँद को निहारते कटी थी जो
अभी तलक है ज़ेह्न में वह शब गुज़िश्ता साल की
यहाँ रहूँ ,वहाँ रहूँ ,कहीं भी मैं रहूँ भले
हमेशा साथ रहती है महक तेरे ख़याल की
उसे कहाँ गरज़ किसी के दिल पर होगा क्या असर
उसे तो जी निकालनी है खाल सिर्फ़ बाल की
किसी बहुत अज़ीज़ शय को खो दिया था एक बार
फिर उसके बाद ख़ुद की भी नहीं कभी सँभाल की
मैं थक गई जवाब देते-देते तुझको ज़िंदगी
मगर रुकी नहीं कभी झड़ी तेरे सवाल की
उरूज के भी दिन सदा नहीं रहे अगर तो फिर
गुज़र ही जाएगी यूँ ही ये रात भी ज़वाल की