भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हमारी इस धरोहर को बचा कर कौन रक्खेगा / मधु 'मधुमन'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधु 'मधुमन' |अनुवादक= |संग्रह=वक़्त...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:36, 27 अप्रैल 2025 के समय का अवतरण

हमारी इस धरोहर को बचा कर कौन रक्खेगा
किताबों को यूँ सीने से लगा कर कौन रक्खेगा

जमाने भर की मालूमात से वाक़िफ़ हैं ये बच्चे
तो अब मासूम बचपन को बचा कर कौन रक्खेगा

दीवारें उठ गयीं आँगन में पर अब मसअला है ये
कि इक बूढ़े शजर को घर में ला कर कौन रक्खेगा

मुअत्तर है जो ये गुलशन बदौलत बागबाँ की ही
वगरना प्यार से यूँ गुल खिला कर कौन रक्खेगा

हवस की होड़ में हमने कभी सोचा नहीं क्यूँकर
हवा पानी बिना जीवन बचा कर कौन रक्खेगा

ज़रा सोचो जहाँ वालों अगर बेटी नहीं होगी
मकाँ को प्यार से फिर घर बना कर कौन रक्खेगा

मुनव्वर हैं जो ये राहें दुआएँ माँ की हैं ‘मधुमन’
वगरना तीरगी से यूँ बचा कर कौन रक्खेगा