भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"साहित्य / एरिष फ़्रीड" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एरिष फ़्रीड |संग्रह=वतन की तलाश / एरिष फ़्रीड }} <P...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
<Poem> | <Poem> | ||
− | + | लफ़्ज़ कुरेदना | |
जिनकी बाद कोई | जिनकी बाद कोई | ||
आगे फिर कभी | आगे फिर कभी | ||
पंक्ति 12: | पंक्ति 12: | ||
और फिर भी जीते रहना | और फिर भी जीते रहना | ||
लगभग पहले सा | लगभग पहले सा | ||
− | + | क्या यह हिम्मत है | |
− | या क्या वे | + | या क्या वे झूठ थे? |
− | + | लफ़्ज़ कुरेदना | |
जिन पर कोई | जिन पर कोई | ||
जान दे बैठे | जान दे बैठे | ||
पंक्ति 26: | पंक्ति 26: | ||
कुछ भी नहीं सिवाय जीने और मरने के | कुछ भी नहीं सिवाय जीने और मरने के | ||
− | कुछ भी नहीं सिवाय | + | कुछ भी नहीं सिवाय लफ़्ज़ों के |
कुछ भी नहीं सिवाय लिखते रहने के | कुछ भी नहीं सिवाय लिखते रहने के | ||
कुछ भी नहीं सिवाय बढ़ते रहने के? | कुछ भी नहीं सिवाय बढ़ते रहने के? | ||
'''मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य | '''मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य |
00:54, 27 नवम्बर 2008 के समय का अवतरण
लफ़्ज़ कुरेदना
जिनकी बाद कोई
आगे फिर कभी
न जी सके पहले की तरह
और फिर भी जीते रहना
लगभग पहले सा
क्या यह हिम्मत है
या क्या वे झूठ थे?
लफ़्ज़ कुरेदना
जिन पर कोई
जान दे बैठे
और जिन पर
फिर भी न जान खोवे
या फिर तुरन्त नहीं
क्या यह जीने की ताकत है
या क्या यह कमज़ोरी है?
कुछ भी नहीं सिवाय जीने और मरने के
कुछ भी नहीं सिवाय लफ़्ज़ों के
कुछ भी नहीं सिवाय लिखते रहने के
कुछ भी नहीं सिवाय बढ़ते रहने के?
मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य