"शाहजहाँको इच्छा / लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा" के अवतरणों में अंतर
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− | क. | + | <b>क.</b> |
यमुनाजलमा बज्दछ मुरली ! | यमुनाजलमा बज्दछ मुरली ! | ||
जलमा बुलबुल रुन्छन् पिलपिल ! | जलमा बुलबुल रुन्छन् पिलपिल ! | ||
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पिरली चल्दछ एक अगोचर मुरलीमा | पिरली चल्दछ एक अगोचर मुरलीमा | ||
यस स्थलमा रे | यस स्थलमा रे | ||
− | प्रेमी | + | प्रेमी प्राणहरूको बतास ! |
− | ख. | + | <b>ख. </b> |
सरिताको छ सागररोदन ! | सरिताको छ सागररोदन ! | ||
− | एक सुनौली | + | एक सुनौली सन्ध्यापछाडि, |
खोजी, खोजी, | खोजी, खोजी, | ||
− | + | पौडिरहेछन् जलमा क्रन्दन, | |
जलमा क्रन्दन ! | जलमा क्रन्दन ! | ||
− | अबोला निशा छ चिहान | + | अबोला निशा छ चिहान सरी यो; |
− | कब्र उपरका क्रन्दन | + | कब्र उपरका क्रन्दन सरी |
− | आँसु बिन्दिए स्वर्ग | + | आँसु बिन्दिए स्वर्ग भरी रे, |
− | + | स्वर्गभरी ! | |
− | ग. | + | <b>ग. </b> |
− | + | विश्वका अघिपति रुन्छ यहाँ, | |
− | आफ्ना | + | आफ्ना फूलहरूमा ! |
आफ्ना मृत्यु र परिवर्तनका | आफ्ना मृत्यु र परिवर्तनका | ||
− | आदिम, स्वनिर्मित नियम | + | आदिम, स्वनिर्मित नियम रूपका |
− | + | भूलहरूमा ! भूलहरूमा ! | |
− | आफैं घोची | + | आफैं घोची आफ्नो छाती |
− | + | शूलहरूमा ! शूलहरूमा ! | |
− | घ. | + | <b>घ. </b> |
तिनी सुतिन् यो लहरीमाथि, | तिनी सुतिन् यो लहरीमाथि, | ||
सुन्दरता ! | सुन्दरता ! | ||
जागृति–शिथिला कोमलता ! | जागृति–शिथिला कोमलता ! | ||
− | बोल्थे | + | बोल्थे मुगाहरू, बोल्नै छोडे ! |
मोती गुड्दथे, वर्षन छोडे ! | मोती गुड्दथे, वर्षन छोडे ! | ||
जलभर दृग छु, जागा राति ! | जलभर दृग छु, जागा राति ! | ||
मस्त निदाइन् नित ती साथी ! | मस्त निदाइन् नित ती साथी ! | ||
ओह ! अकेलापन क्या रुन्छ | ओह ! अकेलापन क्या रुन्छ | ||
− | + | आकाशभरी ! | |
चकमन्न पारी ! | चकमन्न पारी ! | ||
− | ओढ्छिन् कफन जब | + | ओढ्छिन् कफन जब भू विचरी ! |
− | ङ. | + | <b>ङ. </b> |
पुरुषको अतिपरुष छ माग के | पुरुषको अतिपरुष छ माग के | ||
अति कोमलमा जग–वनका ? | अति कोमलमा जग–वनका ? | ||
− | थकित भए जो शान्ति | + | थकित भए जो शान्ति लिनाकन |
− | पार | + | पार जगत्का वनका ? |
लाग्यो थकाइ, तिनी निदाइन्। | लाग्यो थकाइ, तिनी निदाइन्। | ||
− | दोष के | + | दोष के तिनको ? |
“फर्क” भनीकन रुन्छ सदा मन, | “फर्क” भनीकन रुन्छ सदा मन, | ||
तर हा ! वियोगी जनको ! | तर हा ! वियोगी जनको ! | ||
क्रूर माग हो ! कसरी आउन्! | क्रूर माग हो ! कसरी आउन्! | ||
− | + | नगलोस् पाउ सुमनको ? | |
अनन्त शान्ति हो जाती ! | अनन्त शान्ति हो जाती ! | ||
− | दुःख | + | दुःख दिँदो छु तर म पुकारी ! |
राज जस्तो दिनको पनि अझ | राज जस्तो दिनको पनि अझ | ||
आज छ मेरो राति ! | आज छ मेरो राति ! | ||
− | च. | + | <b>च. </b> |
सुकुमारीको कुन चिर जीवन ? | सुकुमारीको कुन चिर जीवन ? | ||
− | उपवनमा वा | + | उपवनमा वा जनगणमा ? |
− | शिखरज्योति | + | शिखरज्योति झैँ सुनधूलीमा चढिरहेकी |
− | झप्प | + | झप्प निभिन् ती, क्षणमा ! |
एक चखेवा रुन्छ असङ्ख्य | एक चखेवा रुन्छ असङ्ख्य | ||
− | + | ताराहरूको वर्षणमा ! | |
आँखा जस्तो नीलो गगनमा, | आँखा जस्तो नीलो गगनमा, | ||
गरेर क्षण, क्षण, कणकणमा ! | गरेर क्षण, क्षण, कणकणमा ! | ||
− | छ. | + | <b>छ. </b> |
− | हात उठाई | + | हात उठाई फैलाइकन, रोई, रुहले |
सोध्दछ कोही | सोध्दछ कोही | ||
“ए सन्नाटाको घोर महावन ! | “ए सन्नाटाको घोर महावन ! | ||
ती लुकेकी खोइ ?” | ती लुकेकी खोइ ?” | ||
− | ज. | + | <b>ज. </b> |
अन्तताको सघन महावन | अन्तताको सघन महावन | ||
प्यास चहार्दछ । | प्यास चहार्दछ । | ||
जीवनज्योतिको ज्वाला कहाँ गो ? | जीवनज्योतिको ज्वाला कहाँ गो ? | ||
− | अपनाएथेँ | + | अपनाएथेँ जो रोजी ? |
अन्धो आँखाको यो तिर्खा | अन्धो आँखाको यो तिर्खा | ||
गर्छ मशीहा साथ सवालः | गर्छ मशीहा साथ सवालः | ||
“अमिट खोजले सारा ढोका | “अमिट खोजले सारा ढोका | ||
− | + | खोली हेर्दा, मिल्दछ काहीँ, | |
दिव्य गुमेको माल ?” | दिव्य गुमेको माल ?” | ||
− | झ. | + | <b>झ. </b> |
− | + | थिइन् दया ती ! निष्ठुरता म ! | |
आफ्नी ढुकुटी भन्ठानेँ ! | आफ्नी ढुकुटी भन्ठानेँ ! | ||
मसिना, खस्रा, सारा इच्छा | मसिना, खस्रा, सारा इच्छा | ||
− | + | थन्काएथेँ — अब जानेँ ! | |
ज्योतिभन्दा मसिनी थिइन् ती | ज्योतिभन्दा मसिनी थिइन् ती | ||
माटोभन्दा खस्रो म ! | माटोभन्दा खस्रो म ! | ||
− | अन्दाज सच्चा गर्न | + | अन्दाज सच्चा गर्न सकिनँ ! |
प्यारको सेवा हाय ! पुगेन ! | प्यारको सेवा हाय ! पुगेन ! | ||
− | लायक कदर | + | लायक कदर रहिनँ ! |
− | ञ. | + | <b>ञ. </b> |
यस तटमा छु सागरको म | यस तटमा छु सागरको म | ||
उस तटमा छौ ए मुमताज ! | उस तटमा छौ ए मुमताज ! | ||
पंक्ति 122: | पंक्ति 122: | ||
आधा बग्दछ स्मृतिको धार ! | आधा बग्दछ स्मृतिको धार ! | ||
− | ट. | + | <b>ट. </b> |
अनन्त भाग्यको अनन्त अभागी | अनन्त भाग्यको अनन्त अभागी | ||
गरीब शाहको ए दिलताज ! | गरीब शाहको ए दिलताज ! | ||
− | याद धनी | + | याद धनी छन् रुँदा, सडकमा, |
अपूर्व सपना मागी आज । | अपूर्व सपना मागी आज । | ||
रङ्कपनमा सचेत बनेको | रङ्कपनमा सचेत बनेको | ||
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तुच्छ छ त्यो पनि ए सुकुमार ! | तुच्छ छ त्यो पनि ए सुकुमार ! | ||
− | ठ. | + | <b>ठ. </b> |
हाम्रा धन सब माटो धुलिन्छन्! | हाम्रा धन सब माटो धुलिन्छन्! | ||
भावपुतली उड्छन्, भुलिन्छन्! | भावपुतली उड्छन्, भुलिन्छन्! | ||
पंक्ति 141: | पंक्ति 141: | ||
छायाचित्र यो संसार ! | छायाचित्र यो संसार ! | ||
− | ड. | + | <b>ड. </b> |
लाचारीका झुक्का पलकमा जल गुड्दछन्! | लाचारीका झुक्का पलकमा जल गुड्दछन्! | ||
इच्छा रङ्गिन्छन्, उड्छन्! | इच्छा रङ्गिन्छन्, उड्छन्! | ||
− | केवल अमर | + | केवल अमर कलाको इङ्गित |
नाघ्दछ देश र काल अपार ! | नाघ्दछ देश र काल अपार ! | ||
− | मिली | + | मिली सुत्यौँ यस जगतिर भन्ने, |
− | मिली | + | मिली उठ्यौँ उस जगतिर भन्ने |
भस्म मस्मको विवाह जनाउन, | भस्म मस्मको विवाह जनाउन, | ||
मूक हृदयको गुञ्जार सुनाउन, | मूक हृदयको गुञ्जार सुनाउन, | ||
− | शिल्पन लाउँछु एक | + | शिल्पन लाउँछु एक अद्भुतको, |
साजा एउटा शयनागार । | साजा एउटा शयनागार । | ||
यस जमुनाको क्रन्दन–किनार ! | यस जमुनाको क्रन्दन–किनार ! | ||
− | ढ. | + | <b>ढ. </b> |
कालले कहिल्यै यस्तो मीठो | कालले कहिल्यै यस्तो मीठो | ||
फूल टिपेन ! | फूल टिपेन ! | ||
पंक्ति 160: | पंक्ति 160: | ||
भूमण्डलको स्मृतिमा गुँज्दछ, | भूमण्डलको स्मृतिमा गुँज्दछ, | ||
गुञ्जिरहला, | गुञ्जिरहला, | ||
− | + | सम्झनुलाई धनी बनाई । | |
भविष्यले तर सोध्ला निरन्तर, | भविष्यले तर सोध्ला निरन्तर, | ||
मेरो आत्मासँगमा निशिभर, | मेरो आत्मासँगमा निशिभर, | ||
पंक्ति 166: | पंक्ति 166: | ||
तिनलाई ?” | तिनलाई ?” | ||
− | ण | + | <b>ण. </b> |
धनी खरानी उपर शिल्पको | धनी खरानी उपर शिल्पको | ||
रानी झुकून् रोई । | रानी झुकून् रोई । | ||
त्यो माटोमा अमर लताका | त्यो माटोमा अमर लताका | ||
− | + | जराहरूको ज्यान फिजाउँछु । | |
प्यारका जलकण तिनका बीउ | प्यारका जलकण तिनका बीउ | ||
− | + | आर्द्र दृगले बोई, बोई ! | |
काल विजेता ताजा मरमर | काल विजेता ताजा मरमर | ||
− | प्रेमले मन्त्रोस्, अपूर्व | + | प्रेमले मन्त्रोस्, अपूर्व छिनाहरू |
जलले धोई । | जलले धोई । | ||
अपूर्व स्मारक कलिलो उठाउँछु, | अपूर्व स्मारक कलिलो उठाउँछु, | ||
− | साथ | + | साथ सुतौँला अनि दोई ! |
− | त. | + | <b>त. </b> |
तरलताले छाओस् मरमर, | तरलताले छाओस् मरमर, | ||
स्नायुसजीव र कोमल, सुन्दर ! | स्नायुसजीव र कोमल, सुन्दर ! | ||
पंक्ति 188: | पंक्ति 188: | ||
विहाग रागको आत्मा साकार, | विहाग रागको आत्मा साकार, | ||
चिर गुञ्जनले रचियोस् आगार, | चिर गुञ्जनले रचियोस् आगार, | ||
− | रोदनको | + | रोदनको झैँ घर ! |
रुदित बनोटको स्वपना उज्यालो | रुदित बनोटको स्वपना उज्यालो | ||
मरमरमा ! | मरमरमा ! | ||
शाश्वत स्मारक वियोग–व्यथाको, | शाश्वत स्मारक वियोग–व्यथाको, | ||
सुन्दरतामा ! | सुन्दरतामा ! | ||
− | युगयुग | + | युगयुग प्यारका हृदयहरूले |
− | पाऊन् | + | पाऊन् स्पन्दन, प्रेरणा, गुञ्जार ! |
प्यारको स्वपना, प्यारको भेटी, | प्यारको स्वपना, प्यारको भेटी, | ||
मरमर आत्मा मृदुल चढीकन | मरमर आत्मा मृदुल चढीकन | ||
पंक्ति 200: | पंक्ति 200: | ||
जमुना–किनार ! | जमुना–किनार ! | ||
− | थ. | + | <b>थ. </b> |
कला अगाडि सम्राट्को होस् | कला अगाडि सम्राट्को होस् | ||
ताज रे झिलझिल उपहास ! | ताज रे झिलझिल उपहास ! | ||
− | + | मटीहरूमा शिल्पित मन्दिर | |
टिक्दछ भन्दछ इतिहास ! | टिक्दछ भन्दछ इतिहास ! | ||
उपलाङ्कित एक दिव्य काव्य होस्! | उपलाङ्कित एक दिव्य काव्य होस्! | ||
पंक्ति 210: | पंक्ति 210: | ||
जिल्द हुने छन् खास । | जिल्द हुने छन् खास । | ||
− | द. | + | <b>द. </b> |
रुपद्धारा सङ्गीत रुलाऊँ ! | रुपद्धारा सङ्गीत रुलाऊँ ! | ||
साकार बिलौना यस दिलको ! | साकार बिलौना यस दिलको ! | ||
मसृण छिनाले मीड बजाऊँ | मसृण छिनाले मीड बजाऊँ | ||
रुदित भावको दिलको ! | रुदित भावको दिलको ! | ||
− | पाषाण बनोस् एक | + | पाषाण बनोस् एक स्वरलहरी झैँ |
एक वियोगी बुलबुलको ! | एक वियोगी बुलबुलको ! | ||
याद दिने होस् निर्माण पुनीत ! | याद दिने होस् निर्माण पुनीत ! | ||
जमुना बन्लिन् मेरो गीत ! | जमुना बन्लिन् मेरो गीत ! | ||
− | ध. | + | <b>ध. </b> |
शिल्पित उपलको वेलीवनमा, | शिल्पित उपलको वेलीवनमा, | ||
यो रुह बुलबुल, | यो रुह बुलबुल, | ||
− | घनले | + | घनले निलेकी शशिकन सम्झी, |
बोली रहला युगका यात्री | बोली रहला युगका यात्री | ||
सामु, दिलको पीडा, खलबल ! | सामु, दिलको पीडा, खलबल ! | ||
− | न. | + | <b>न. </b> |
मेरा दृगका मोती सीमित ! | मेरा दृगका मोती सीमित ! | ||
सारा नजरका मोती मागूँ ! | सारा नजरका मोती मागूँ ! | ||
मोती भिखारी भई यस तटमा, | मोती भिखारी भई यस तटमा, | ||
− | जुगजुगका सब | + | जुगजुगका सब प्यारहरूका |
गहिराइका दाना, दाना, | गहिराइका दाना, दाना, | ||
बटुलूँ, राखूँ ! | बटुलूँ, राखूँ ! | ||
पंक्ति 238: | पंक्ति 238: | ||
रोई, मागूँ ! | रोई, मागूँ ! | ||
− | प. | + | <b>प. </b> |
व्योमको गुमज प्यारको गुम्मज ! | व्योमको गुमज प्यारको गुम्मज ! | ||
− | यी पृथिवी | + | यी पृथिवी हुन् अविरल जलकी |
शिल्पकला ! | शिल्पकला ! | ||
यी लहरा हुन् प्यारका तृष्णा, | यी लहरा हुन् प्यारका तृष्णा, | ||
पंक्ति 255: | पंक्ति 255: | ||
शवनम ? शवनम ? | शवनम ? शवनम ? | ||
− | फ. | + | <b>फ. </b> |
निद्रित बुलबुल त्यहि अघि बोलून्, | निद्रित बुलबुल त्यहि अघि बोलून्, | ||
मानव दिलका ! | मानव दिलका ! | ||
− | स्थान, कालका सीमा नाघून् | + | स्थान, कालका सीमा नाघून् पङ्खहरूले पलका ! |
मेरो होइन, प्यारकै होस् यो शयनागार ! | मेरो होइन, प्यारकै होस् यो शयनागार ! | ||
मुमताज, होइन, सौन्दर्य | मुमताज, होइन, सौन्दर्य | ||
पंक्ति 266: | पंक्ति 266: | ||
रोई दुगुर्दी जलधार । | रोई दुगुर्दी जलधार । | ||
− | ब. | + | <b>ब. </b> |
− | प्यार नै हो | + | प्यार नै हो धर्म्म महान् ! |
− | + | सुन्दरतम् ! | |
− | + | सुन्दरको हो ताज रे ईश्वर ! | |
मार्ग भक्ति हो ! | मार्ग भक्ति हो ! | ||
भेटी शवनम ! | भेटी शवनम ! | ||
पंक्ति 284: | पंक्ति 284: | ||
याद भजन ! | याद भजन ! | ||
स्मारक, पूजन ! | स्मारक, पूजन ! | ||
− | बिन्दु, | + | बिन्दु, बिन्दुका माला ! |
− | हावभाव | + | हावभाव हुन् हाम्रा नट ! |
− | सब | + | सब धर्म्मको हो आत्मा प्यार ! |
वेद, कुरान हो | वेद, कुरान हो | ||
जलको घट ! | जलको घट ! | ||
− | भ. | + | <b>भ. </b> |
पुतलीको यो बत्ती पछिको | पुतलीको यो बत्ती पछिको | ||
छटपटलाई स्मारक होस्! | छटपटलाई स्मारक होस्! | ||
जमुनाजल यो सागरसम्मन् | जमुनाजल यो सागरसम्मन् | ||
− | प्रेमकथाको | + | प्रेमकथाको प्रचारक होस्! |
+ | चाँदनीको स्वर्ग मोहनी | ||
+ | पत्थर उरको दारक होस् | ||
अछूत ऊँचाइमा अवलम्बित श्री | अछूत ऊँचाइमा अवलम्बित श्री | ||
− | + | यसको भाव विचारक होस्! | |
संसारको यो पत्थरमाथि | संसारको यो पत्थरमाथि | ||
एक शाहको जलको अङ्क ! | एक शाहको जलको अङ्क ! | ||
पंक्ति 303: | पंक्ति 305: | ||
सुषमा प्रति यो चिर वन्दन ! | सुषमा प्रति यो चिर वन्दन ! | ||
साथ सुतौँला युगयुग साथी ! | साथ सुतौँला युगयुग साथी ! | ||
− | मानव दिलमा | + | मानव दिलमा विश्वधर्म्मको |
दिई निरन्तर स्पन्दन ! | दिई निरन्तर स्पन्दन ! | ||
− | + | पाषाणहरूमा भाषा भरूँला, | |
चूप सुती निशिदिन ! | चूप सुती निशिदिन ! | ||
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15:54, 1 जून 2025 के समय का अवतरण
क.
यमुनाजलमा बज्दछ मुरली !
जलमा बुलबुल रुन्छन् पिलपिल !
रुन्छन् कलकल !
यो तटको, वन छाया छवियुक्त
यौवन, यौवन !
दिवानिशाको छाया अङ्कित,
वियोगमिलनको क्रीडाभूमि,
वृन्दावन !
यो मिलनको रोइरहेको इतिहास !
याद रुँदाको बास !
पिरली चल्दछ एक अगोचर मुरलीमा
यस स्थलमा रे
प्रेमी प्राणहरूको बतास !
ख.
सरिताको छ सागररोदन !
एक सुनौली सन्ध्यापछाडि,
खोजी, खोजी,
पौडिरहेछन् जलमा क्रन्दन,
जलमा क्रन्दन !
अबोला निशा छ चिहान सरी यो;
कब्र उपरका क्रन्दन सरी
आँसु बिन्दिए स्वर्ग भरी रे,
स्वर्गभरी !
ग.
विश्वका अघिपति रुन्छ यहाँ,
आफ्ना फूलहरूमा !
आफ्ना मृत्यु र परिवर्तनका
आदिम, स्वनिर्मित नियम रूपका
भूलहरूमा ! भूलहरूमा !
आफैं घोची आफ्नो छाती
शूलहरूमा ! शूलहरूमा !
घ.
तिनी सुतिन् यो लहरीमाथि,
सुन्दरता !
जागृति–शिथिला कोमलता !
बोल्थे मुगाहरू, बोल्नै छोडे !
मोती गुड्दथे, वर्षन छोडे !
जलभर दृग छु, जागा राति !
मस्त निदाइन् नित ती साथी !
ओह ! अकेलापन क्या रुन्छ
आकाशभरी !
चकमन्न पारी !
ओढ्छिन् कफन जब भू विचरी !
ङ.
पुरुषको अतिपरुष छ माग के
अति कोमलमा जग–वनका ?
थकित भए जो शान्ति लिनाकन
पार जगत्का वनका ?
लाग्यो थकाइ, तिनी निदाइन्।
दोष के तिनको ?
“फर्क” भनीकन रुन्छ सदा मन,
तर हा ! वियोगी जनको !
क्रूर माग हो ! कसरी आउन्!
नगलोस् पाउ सुमनको ?
अनन्त शान्ति हो जाती !
दुःख दिँदो छु तर म पुकारी !
राज जस्तो दिनको पनि अझ
आज छ मेरो राति !
च.
सुकुमारीको कुन चिर जीवन ?
उपवनमा वा जनगणमा ?
शिखरज्योति झैँ सुनधूलीमा चढिरहेकी
झप्प निभिन् ती, क्षणमा !
एक चखेवा रुन्छ असङ्ख्य
ताराहरूको वर्षणमा !
आँखा जस्तो नीलो गगनमा,
गरेर क्षण, क्षण, कणकणमा !
छ.
हात उठाई फैलाइकन, रोई, रुहले
सोध्दछ कोही
“ए सन्नाटाको घोर महावन !
ती लुकेकी खोइ ?”
ज.
अन्तताको सघन महावन
प्यास चहार्दछ ।
जीवनज्योतिको ज्वाला कहाँ गो ?
अपनाएथेँ जो रोजी ?
अन्धो आँखाको यो तिर्खा
गर्छ मशीहा साथ सवालः
“अमिट खोजले सारा ढोका
खोली हेर्दा, मिल्दछ काहीँ,
दिव्य गुमेको माल ?”
झ.
थिइन् दया ती ! निष्ठुरता म !
आफ्नी ढुकुटी भन्ठानेँ !
मसिना, खस्रा, सारा इच्छा
थन्काएथेँ — अब जानेँ !
ज्योतिभन्दा मसिनी थिइन् ती
माटोभन्दा खस्रो म !
अन्दाज सच्चा गर्न सकिनँ !
प्यारको सेवा हाय ! पुगेन !
लायक कदर रहिनँ !
ञ.
यस तटमा छु सागरको म
उस तटमा छौ ए मुमताज !
शाहजहाँ यो छटपट गर्दछ,
पदधूलीमा फ्याँकी ताज !
असीम अकेलापन अब रुन्छे,
ती सब दाना, ती सब दाना
जसले बन्यो यो संसार!
आधा जीवन शून्य विलीन छ,
आधा बग्दछ स्मृतिको धार !
ट.
अनन्त भाग्यको अनन्त अभागी
गरीब शाहको ए दिलताज !
याद धनी छन् रुँदा, सडकमा,
अपूर्व सपना मागी आज ।
रङ्कपनमा सचेत बनेको
मेरो, अमरमा के उपहार ?
संसार चढाऊँ ! जीवन चढाऊँ ?
तुच्छ छ त्यो पनि ए सुकुमार !
ठ.
हाम्रा धन सब माटो धुलिन्छन्!
भावपुतली उड्छन्, भुलिन्छन्!
अमर तिमीमा के उपहार ?
नीरवताले छुन्छे हाम्रो
स्पन्दित दिलको चिर गुञ्जार !
क्रन्दन, पुकार !
छायाचित्र यो संसार !
ड.
लाचारीका झुक्का पलकमा जल गुड्दछन्!
इच्छा रङ्गिन्छन्, उड्छन्!
केवल अमर कलाको इङ्गित
नाघ्दछ देश र काल अपार !
मिली सुत्यौँ यस जगतिर भन्ने,
मिली उठ्यौँ उस जगतिर भन्ने
भस्म मस्मको विवाह जनाउन,
मूक हृदयको गुञ्जार सुनाउन,
शिल्पन लाउँछु एक अद्भुतको,
साजा एउटा शयनागार ।
यस जमुनाको क्रन्दन–किनार !
ढ.
कालले कहिल्यै यस्तो मीठो
फूल टिपेन !
टिपिएपछि पनि जसको सुगन्ध,
भूमण्डलको स्मृतिमा गुँज्दछ,
गुञ्जिरहला,
सम्झनुलाई धनी बनाई ।
भविष्यले तर सोध्ला निरन्तर,
मेरो आत्मासँगमा निशिभर,
“के चढाइस् आँसुसँगमा
तिनलाई ?”
ण.
धनी खरानी उपर शिल्पको
रानी झुकून् रोई ।
त्यो माटोमा अमर लताका
जराहरूको ज्यान फिजाउँछु ।
प्यारका जलकण तिनका बीउ
आर्द्र दृगले बोई, बोई !
काल विजेता ताजा मरमर
प्रेमले मन्त्रोस्, अपूर्व छिनाहरू
जलले धोई ।
अपूर्व स्मारक कलिलो उठाउँछु,
साथ सुतौँला अनि दोई !
त.
तरलताले छाओस् मरमर,
स्नायुसजीव र कोमल, सुन्दर !
एकै लयका सुरका चोट
सचेत छिनाले काटून् तिनभर,–
मोती झुल्ने लतिका फुल्दा,
रोदन दिलभर !
विहाग रागको आत्मा साकार,
चिर गुञ्जनले रचियोस् आगार,
रोदनको झैँ घर !
रुदित बनोटको स्वपना उज्यालो
मरमरमा !
शाश्वत स्मारक वियोग–व्यथाको,
सुन्दरतामा !
युगयुग प्यारका हृदयहरूले
पाऊन् स्पन्दन, प्रेरणा, गुञ्जार !
प्यारको स्वपना, प्यारको भेटी,
मरमर आत्मा मृदुल चढीकन
पघलोस्, विलपी
जमुना–किनार !
थ.
कला अगाडि सम्राट्को होस्
ताज रे झिलझिल उपहास !
मटीहरूमा शिल्पित मन्दिर
टिक्दछ भन्दछ इतिहास !
उपलाङ्कित एक दिव्य काव्य होस्!
अमिधाताज !
जिन्दगी औ मृत्यु जसका
जिल्द हुने छन् खास ।
द.
रुपद्धारा सङ्गीत रुलाऊँ !
साकार बिलौना यस दिलको !
मसृण छिनाले मीड बजाऊँ
रुदित भावको दिलको !
पाषाण बनोस् एक स्वरलहरी झैँ
एक वियोगी बुलबुलको !
याद दिने होस् निर्माण पुनीत !
जमुना बन्लिन् मेरो गीत !
ध.
शिल्पित उपलको वेलीवनमा,
यो रुह बुलबुल,
घनले निलेकी शशिकन सम्झी,
बोली रहला युगका यात्री
सामु, दिलको पीडा, खलबल !
न.
मेरा दृगका मोती सीमित !
सारा नजरका मोती मागूँ !
मोती भिखारी भई यस तटमा,
जुगजुगका सब प्यारहरूका
गहिराइका दाना, दाना,
बटुलूँ, राखूँ !
दुनियाँ डाकूँ !
भविष्य ! तेरो उपहार निरन्तर
रोई, मागूँ !
प.
व्योमको गुमज प्यारको गुम्मज !
यी पृथिवी हुन् अविरल जलकी
शिल्पकला !
यी लहरा हुन् प्यारका तृष्णा,
सरिताका यी सुन्दर चेली,
वेली, कलिला !
यी कुसुम हुन् विश्वशिल्पी प्राणपवनले
कुँदिई बनेका चट्टान, शिला !
निशदिन बत्ती सामु भला !
सृष्टि हो यो परमेश्वरको
स्थायी स्मारक कोही निम्ति !
असीम ! अगम !
के रुँदैनौ तिमी पनि एकला
निशिमा भन रे ?
शवनम ? शवनम ?
फ.
निद्रित बुलबुल त्यहि अघि बोलून्,
मानव दिलका !
स्थान, कालका सीमा नाघून् पङ्खहरूले पलका !
मेरो होइन, प्यारकै होस् यो शयनागार !
मुमताज, होइन, सौन्दर्य
सुतेर सपनून् जमुना–किनार ।
सागरतृष्णा बोलिरहोस्,
रोई दुगुर्दी जलधार ।
ब.
प्यार नै हो धर्म्म महान् !
सुन्दरतम् !
सुन्दरको हो ताज रे ईश्वर !
मार्ग भक्ति हो !
भेटी शवनम !
सुन्दरको नै, आत्मा सुन्दछ,
मसिनो आहट !
शेष सुष्टिबाट छ त्यसको
दिलमा अनौठा बोलावट !
तृष्णा गति हो !
आशा इशारा !
आत्मा आत्मालाई चिनाउँछ
सलिल किनारा, सलिल किनारा !
म उक्लन्छु, ती ओर्लन्छिन्!
इश्ल मिलन हो ! इश्ल मिलन !
याद भजन !
स्मारक, पूजन !
बिन्दु, बिन्दुका माला !
हावभाव हुन् हाम्रा नट !
सब धर्म्मको हो आत्मा प्यार !
वेद, कुरान हो
जलको घट !
भ.
पुतलीको यो बत्ती पछिको
छटपटलाई स्मारक होस्!
जमुनाजल यो सागरसम्मन्
प्रेमकथाको प्रचारक होस्!
चाँदनीको स्वर्ग मोहनी
पत्थर उरको दारक होस्
अछूत ऊँचाइमा अवलम्बित श्री
यसको भाव विचारक होस्!
संसारको यो पत्थरमाथि
एक शाहको जलको अङ्क !
ताजमहल होस्! जगभर जाती !
आदर्श, विना एक सानु कलङ्क !
सुषमा प्रति यो चिर वन्दन !
साथ सुतौँला युगयुग साथी !
मानव दिलमा विश्वधर्म्मको
दिई निरन्तर स्पन्दन !
पाषाणहरूमा भाषा भरूँला,
चूप सुती निशिदिन !