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"दुर्दिन है आज / ओसिप मंदेलश्ताम" के अवतरणों में अंतर

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दुर्दिन है आज
 
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बन्द है
 
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टिड्डों का समूहगान
 
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क़ब्र के काले पत्थरों से
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उदास चट्टानी दालान
 
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कभी गूँजे हैं
 
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तो कभी सुन पड़े
 
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लटके हुए कौओं की चीख़
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क्षण के पीछे उड़ा जा रहा क्षण
 
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आकर बन्धन को दूर करो
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माया को चूर करो
 
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कोई प्रचण्ड तराना गूँजे फिर
 
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बाग़ी, अनसुलझे,अनजाने
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सब रहस्यों को दूर करो
 
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ओ कठोर आत्मा काली !
 
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लटकी चुपचाप तू डोल रही है
 
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भाग्य बन्द-द्वार खटखटाए ज़ोर से
 
भाग्य बन्द-द्वार खटखटाए ज़ोर से
 
 
पर तू न खोल रही है
 
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'''प्रसिद्ध रूसी कवि मयाकोव्स्की की प्रेमिका लील्या ब्रीक के अनुसार मंदेलश्ताम की यह कविता
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मायकोव्स्की की प्रिय कविता थी ।'''
  
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मयाकोव्स्की की प्रिय कविता थी ।
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Сегодня дурной день,
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Кузнечиков хор спит,
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И сумрачных скал сень –
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Я вижу дурной сон,
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За мигом летит миг.
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Земную разрушь клеть
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И яростный гимн грянь –
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Бунтующих тайн медь!
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О, маятник душ строг,
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Качается глух, прям,
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И страстно стучит рок
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В запретную дверь к нам...
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23:50, 7 जून 2025 का अवतरण

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: ओसिप मंदेलश्ताम  » संग्रह: तेरे क़दमों का संगीत
»  दुर्दिन है आज


दुर्दिन है आज
बन्द है
टिड्डों का समूहगान
क़ब्र के काले पत्थरों से
अँटा पड़ा है
उदास चट्टानी दालान

कभी गूँजे हैं
छोड़े गए तीरों के स्वर
तो कभी सुन पड़े
लटके हुए कौओं की चीख़
मैं देखूँ सपना ख़राब-सा
क्षण के पीछे उड़ा जा रहा क्षण
समय दे रहा है कोई सीख

तुम आओ
आकर बन्धन को दूर करो
पृथ्वी के इस पिंजड़े को काटो
माया को चूर करो
कोई प्रचण्ड तराना गूँजे फिर
बाग़ी, अनसुलझे,अनजाने
सब रहस्यों को दूर करो

ओ कठोर आत्मा काली !
लटकी चुपचाप तू डोल रही है
भाग्य बन्द-द्वार खटखटाए ज़ोर से
पर तू न खोल रही है

प्रसिद्ध रूसी कवि मयाकोव्स्की की प्रेमिका लील्या ब्रीक के अनुसार मंदेलश्ताम की यह कविता
मायकोव्स्की की प्रिय कविता थी ।

(रचनाकाल :1911)

मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
             Осип Мандельштам
               Сегодня дурной...

Сегодня дурной день,
Кузнечиков хор спит,
И сумрачных скал сень –
Мрачней гробовых плит.

Мелькающих стрел звон
И вещих ворон крик...
Я вижу дурной сон,
За мигом летит миг.

Явлений раздвинь грань,
Земную разрушь клеть
И яростный гимн грянь –
Бунтующих тайн медь!

О, маятник душ строг,
Качается глух, прям,
И страстно стучит рок
В запретную дверь к нам...

1911