भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एसो भजन की आस प्रभुजी / भव्य भसीन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भव्य भसीन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:44, 8 जून 2025 के समय का अवतरण

एसो भजन की आस प्रभुजी,
दीजो दान दया करके।
मैं जागू रैन, ताकूँ दिन भर,
निरखूँ बाट बन जोगन जी।

भूख प्यास सताए ना तब,
व्याकुलता बस दर्शन की।
नयना झरें प्रेम के आँसू,
करूँ मैं अर्पण चरणन जी।
ऐसो भजन की आस प्रभुजी.

मैं गाऊँ श्याम गोपाल सांवरिया,
भटकूँ ब्रज की गली गली।
यमुना तट हो साँझ सवेरा,
 ना लौदूँ मैं घर को जी।
ऐसो भजन की आस प्रभुजी...

ब्रज रज लेट लपेट रहूँ,
श्यामल मुख की ताक छवि।
नाचूँ, गाऊँ, नीर बहाऊँ,
पड़ी रहूँगी चरणन जी।
ऐसो भजन की आस प्रभुजी...

तब तुम आना रास रचैया
नैना लिए प्रेम की बाणी
कह सुनाना बात वही
जो हृदय की पीड़ा हरे रघु जी
ऐसो भजन की आस प्रभुजी