भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आज रंग है / भव्य भसीन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भव्य भसीन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:45, 8 जून 2025 के समय का अवतरण

धूसर शाम घड़ियाँ गिन रही है।
उदास हवा थक के चूर है।
नीला सावन बीत जाने से,
हरे पत्ते मुरझा गए हैं।
लाल आँखे इंतज़ार में सो न सकी।
स्याही फ़िर से काले हर्फ़ उगल रही है।
सारे रंग रो रो धुल गए,
पर आज रंग है सखी, आज रंग है।