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"मनुष्य होने का कठिन पाठ / पूनम चौधरी" के अवतरणों में अंतर

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23:18, 8 जून 2025 के समय का अवतरण


करुणा और तर्क के बीच
एक अदृश्य पुल है।
न किसी ग्रंथ में,
न शब्दकोश में वह परिभाषित —
पर दिखता है
भूख से तड़पती
किसी आँख की नमी में।

वह स्त्री,
जब रोटी चुराते पकड़ी जाती है,
तो उसकी चुप्पी
गूँजती है —
हर धर्म, हर राष्ट्र से ऊपर
एक निर्विवाद सत्य बनकर।

सोचती हूँ —
सरहदें क्या सिर्फ़ ज़मीन बाँटती हैं,
या तोड़ देती हैं वह मौन
जो दुःख को
बिना किसी अनुवाद
स्वीकार लेता है?

हमने चुना विकास का कठिन रास्ता —
सुविधाएँ, तकनीक,
और एक चकाचौंध करती सभ्यता।
पर भूल गए
कैसे बोया जाता है
मनुष्यता का बीज।

न धर्म समझ सका,
न संविधान,
न विज्ञान की सारी उपलब्धियाँ
क्योंकि हमने त्यागना न सीखा
तर्क की सत्ता को।

मनुष्यता —
कोई प्रस्तावना नहीं,
कोई वंदना नहीं,
बल्कि अभ्यास है —
दूसरे के अस्तित्व को,
उसकी असहमति सहित
स्वीकारने का।

यदि तुम
भय-मुक्त होकर
किसी भिन्न पथ को
उसकी स्वतंत्रता सहित
जीने दे सकते हो —
तो तुम पढ़ चुके हो
मनुष्य होने का
सबसे कठिन पाठ।

जब तुम
निर्बल की गरिमा को
उसके संकोच सहित
स्वीकार सकते हो —
तब तुम
मनुष्यता के प्रथम सोपान पर हो।

वह क्षण,
जब किसी चौराहे पर
गिरते हुए को देखकर
तुम पूछते हो —
"क्या आप ठीक हैं?"
और उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना
सुनने को तैयार होते हो —
वहीं से शुरू होती है
मनुष्यता।

जब वह बच्चा
फीस के लिए चोरी करता है,
और समाज उसे
दंड की दृष्टि से देखता है —
पर एक शिक्षक
चुपचाप
उसकी पढ़ाई का उत्तरदायित्व उठा लेता है —
तो वह न्याय नहीं,
वह करुणा नहीं —
वह है -मानवता।

यदि तुम
अपनी भाषा का अहं
त्यागकर
दूसरे की भाषा में
उसका अर्थ खोज सकते हो —
तो तुम
चढ़ चुके हो
मनुष्यता की कठिनतम सीढ़ी पर।

अब मैं भी
सीख रही हूँ —
कैसे किसी आत्मा में उतरकर
लौट आना
बिना उसे बदले,
बिना उसे तोड़े।

शायद एक दिन
मनुष्य हो पाऊँगी —
जब सीख जाऊँ
स्वीकारना —
बिना उत्तर माँगे
-0-