भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"परदेस-2 / चन्द्र गुरुङ" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्र गुरुङ |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:53, 15 जून 2025 के समय का अवतरण
स्वदेश से चोंच में ख़ुशी के टुकडे दबाए
खबर का एक पक्षी
दिल के झरोखे पर आकर बैठता है
आँसू बनकर गिरता है जीवन
हाय ये ख़ुशी!
स्वदेश से घरपरिवार का दुःख लेकर
संदेश का काला बादल आ पहुँचता है
लाता है दर्द भरी हवा
कड़कती है दिल में दुःखों की बिजली
हाय ये दुःख!
परदेस तो
दोधारी तलवार है
जो ख़ुशी में भी काटती है
दुःख में भी काटती है।